अनाम रिश्ते।
अनाम रिश्ते।
जीवन के साथ ही जुड़ जाते हैं कुछ रिश्ते।
माता-पिता जीवन में होते हैं फरिश्ते।
समय बीतते बीतते बढ़ते जाते हैं रिश्तेदार।
कुछ मिलते है घर में ही, कुछ मिलते तीज त्यौहार।
आपाधापी रिश्तो में फिर यूं ही बढ़ती जाती है।
द्वेष, क्लेश ,घृणा भी रिश्तो में ही जगह पाती है।
अपने ही धोखा देते हैं।
कहीं मन से मन नहीं मिलते हैं।
कद्र जिनकी करते रहे हम वह कद्र हमारी नहीं करते हैं।
कुछ ऐसे रिश्तेदारों के कारण ही हम यूं ही जीते मरते हैं।
जीवन में कुछ अनाम रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो केवल मन से ही जुड़ते हैं।
भले ही जीवन में फिर मिले या ना मिले उनसे,
लेकिन वह मन में ही पलते बढ़ते हैं।
उनके साथ बिताए कुछ पल
पूरा जीवन जीने का साहस देते हैं।
कितने ही दुखी हो मन में लेकिन
उनकी याद ही मन को खुशियों से भर देते हैं।
