माँ की साड़ी का पल्लू
माँ की साड़ी का पल्लू
शायद आजकल थोड़े बच्चे ही जानते हों, कि पल्लू क्या है
क्योंकि महिलायें आजकल, साड़ी कभी कभार ही पहनती हैं
बड़ों के सामने साडी का पल्लू सर ढकने के काम आता था
और साडी पहनावे में सुंदरता एवं शिष्टता प्रदान करता था
बच्चों के आँसू पोंछने और, सब्जी लाने में काम आता था
कान साफ करने और कभी हाथ की तौलिया बन जाता था
पल्लू का कोना पैसे और, अंगूठी बाँधने में काम आता था
मगर रसोई में गर्म बरतनों को, पकड़ने में काम आता था
सोते बच्चों को, माँ की गोद गद्दा, और पल्लू आवरण था
संगत में, शर्मीले बच्चों को, छिपने का सुरक्षित स्थान था
बाहर जाते समय, छोटे बच्चों को, माँ का पल्लू लंगर था
बड़ी दुनिया में, माँ के साथ रहने को, पल्लू मार्गदर्शक था
मटर छीलने के बाद उसके छिलके फेंकने में काम आता था
और कभी रसोई में वही पल्लू, माँ का एप्रन बन जाता था
ठन्डे मौसम में माँ पल्लू से अपनी बांहों को लपेट लेती थी
गर्मी में चूल्हे पर काम करते, अपना पसीना पौंछ लेती थी
पुरानी साड़ी का पल्लू चंद सेकंडो में, बहुत आश्चर्य होता था
कैसे पूरे घर के सारे फर्नीचर से धूल झाड़ता चला जाता था
कभी पेड़ों से गिरे जामुन और इमली लाने में काम आता था
कभी यही पल्लू बच्चों के खिलौनों की बास्केट बन जाता था
मुझे नहीं लगता कि कभी कोई ऐसा आविष्कार हो पायेगा
जो इतने उपयोगी, साड़ी के पल्लू से, आगे निकल जायेगा
“योगी” चाहे जो कह लो, ये पल्लू एक जादुई ताना बाना है
शिष्टता समेटे, माँ की साडी का पल्लू, प्यार का खज़ाना है