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कवि प्रताप चौहान "प्रहरी"

Romance Fantasy

4.8  

कवि प्रताप चौहान "प्रहरी"

Romance Fantasy

कभी शरमाऊं कभी नजरें मिलाऊं

कभी शरमाऊं कभी नजरें मिलाऊं

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 कभी शर्माऊं कभी नजरें मिलाऊं

        क्या इश्क का है जादू

 कभी इतराऊं कभी जान लुटाऊँ

         क्या तेरा चला जादू

बिना करतब के ही...कला खाऊं एएए...एएएएएए


जा मेरे यारा मुझे याद ना कर 

डर लगता है तकरार ना कर...हो हो हो.....होहोहोहो!


तेरी जुल्फों में आसमां खो गया

जैसे कोई यार का दीवाना खो गया

आजा मेरी बांहों में प्रीत लुटाऊँ,

कभी शर्माऊं कभी नजरें मिलाऊं,

     क्या तूने किया जादू रारारा...रारारारारा !


 राहों में हमारी मुलाकात हो गई

 बिना बोले कोई बात हो गई

 प्यार की सजा तो देखो

 लगे जैसे दिन में रात हो गई...लालाला...लालालालाला !


कभी शर्माऊं कभी नजरें मिलाऊं

        क्या इश्क का है जादू.....!

 कभी इतराऊं कभी जान लुटाऊं

         क्या तेरा चला जादू.....!

बिना ख्वाबों के ही... चले जा तू ..... हे हे हे हेहेहेहे !


 गाने के बोल.. अँखियाँ मिलाऊं कभी अँखियाँ चुराऊं






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