बचपन से बुढे तक का सफर- लोग
बचपन से बुढे तक का सफर- लोग
जब मैं रोता था तो
हँसाते थे लोग,
आज जब हसता हूँ तो
रुलाते है लोग !
जब मैं गिरता था तो
गिरने नहीं देते थे लोग
आज जब संभलना सिखा है तो
गिराते है लोग !
जब मैं मंजिल भटक जाता था तो
मंजिल दिखाते थे लोग,
आज जब मंजिल पाई है तो
पाँव खिंचते है लोग !
जब मै लड़खडाते हुए चलता था तो
हात पकड़ के चलाते थे लोग,
आज जब लकड़ी पकड़ के चलता हूँ तो
लात मारके गिराते है लोग !
जब मैं लिखना नहीं जानता था तो
हात पकड़ कर सिखाते थे लोग,
आज जब लिखना जानता हूँ तो
कलम छीन लेते हैं लोग !