कहाँ हो तुम
कहाँ हो तुम
कहाँ हो तुम
आ जाओ मुझे भी साथ ले चलो,
पता नहीं कितने सालो पहले की बात है
जब भी मैं अकेली होती तुम आ जाते और
मैं तुम्हारे साथ खेलती और ढेरों बातें करती,
किसी के आते ही तुम पलट कर चले जाते !
धीरे-धीरे मैं बड़ी होने लगी और समझ में आने लगा
तुम मेरा वहम हो।
एक दिन मैंने जानबूझ कर कहा मैं भी चलूँगी तुम्हारे साथ,
तुमने कहा नहीं तुम नहीं जा सकती और
अचानक ग़ायब हो गए और कभी नहीं आये !
कहाँ हो तुम कौन हो तुम अब तो आ जाओ
मुझे तुम्हारी जरुरत है !
ढेर सारी बातें करना चाहती हूँ तुमसे,
दम घुटता है मेरा, नहीं कहूँगी अब वहम !
नहीं चाहिए मुझे किसी का प्यार,
नहीं चाहिए मुझे किसी की सहानुभूति, दया
और नहीं चाहती मैं किसी से प्यार करना !
बस तुम आ जाओ, ले चलो मुझे बहुत दूर,
चलते चलते किसी धुंध में खो जाऊँ,
जहाँ कोई ख़ुशी हो न कोई दर्द हो,
अपने होने न होने का कोई एहसास न हो,
जो भी हो तुम बस आ जाओ ना..!