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Paramjeet singh

Tragedy

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Paramjeet singh

Tragedy

कष्ट क्रंदन दिल दुखाए जा रहा

कष्ट क्रंदन दिल दुखाए जा रहा

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कष्ट क्रंदन दिल दुखाए जा रहा।

इक कहानी ध्वज सुनाए जा रहा।।


बाँटते नेता रहे हैं देश को।

दृश्य ये पीड़ा बढ़ाए जा रहा।।


अब चरस गाँजा अफीमी लोग हैं।

यह नशा तन को गलाए जा रहा।।


देख कर यह घाव गहरे राष्ट्र के।

काल भी आँसू बहाए जा रहा।।


जो चला था पाँव नंगे वो पिता।

पैर के छाले छुपाए जा रहा।।


था किया सर्वस्व अर्पण मित्र पर।

बन भला सबकुछ भुलाए जा रहा।।


नीर माँगा प्यास थी कोविद बहुत।

रिपु गरल मीठा पिलाए जा रहा।।


हाथ कोविद थामता जिसका वही।

राह में पत्थर गिराए जा रहा।।



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