मेरा सामान
मेरा सामान
सुबह से ढूंढ रही हूँ
जाने कहाँ रख दी,
रात तक तो यहीं थी
मेरे सिरहाने।
किताब के पन्ने पलट के देखा,
पुरानी तस्वीरों की एल्बम,
घडी के साथ दराज में तो
नहीं रख दी उफ़।
पलंग के नीचे, ताक में,
दुछत्ती में,
अलमारी में सजी वैजंतियाँ भी तलाशीं,
खोजा अपनी रचनाओं में भी।
कहाँ मर गयी !
चादर झाड़ी,
तकिये टटोले,
ओह,
कहीं ऑफिस से लौटते समय
बस में भूल तो नहीं गयी ?
अब तो नहीं मिलेगी।
दरवाज़े पे दस्तक हुई,
किवाड़ खोले,
तुम थे,
और यह देखो, है यह !
चलो अब लौटा दो मुझे
कब से ढूंढ रही हूँ।
तुमने शरारत से देखा
मैं मुठ्ठी खोलने को लपकी
तुम दौड़े
और मैं तुम्हारे पीछे
और फिर .. फिसली।
सहसा ही खिलखिला कर
हॅसने लगी मैं
और तुम्हारे हृदय से
लिपट गयी।
और देखो..
तुम्हारी मुठ्ठी से उछल कर
होठों पर बिखर गयी,
मेरी मुस्कान..!