फिर किसी रात..
फिर किसी रात..
फिर किसी रात हाथ थाम लो,
फिर किसी रात चल पड़ें हम,
फिर किसी रात पूरे चाँद को,
देखें बाँध टकटकी !
फिर किसी रात सूनी सड़क पर,
बेइरादा चलते रहें हम !
फिर किसी रात छत पे,
तारों को गिनने की कोशिश,
फिर किसी रात सागर के पार,
टिमटिमाती एक अकेली रोशनी !
फिर किसी रात हो
गुलमोहर की बारिश,
या बूँदों की ही तेज़ बारिश
घर की खिड़की से ताकें !
फिर किसी रात लम्बी डगर में,
रुक के चाय की चुस्कियाँ,
फिर किसी रात तुम्हारे चुटकुले
और हो मेरी हँसी !
फिर कोई रात हो
उस रात सी,
कि अब तो
हर रात अमावस है !