सफ़र तुम्हारे बिना
सफ़र तुम्हारे बिना
नदिया के पुल के ऊपर जब मेरी ट्रेन गुज़रती है,
हरियाले खेतों में जब कोई गैया चारा चरती है।
दूर कहीं किसी गाँव में कोई चूल्हा जलता है,
तेरे विरह में मेरा यह मन मद्धम मद्धम जलता है !
आसमान तकता है मुझको तारे घूरा करते हैं,
कोटा स्टेशन पर यात्री जब थोड़ी देर ठहरते हैं।
कोई दिलबर जब अपने दिलबर से मिलने चलता है,
तेरे विरह में मेरा यह मन मद्धम मद्धम जलता है !
छवि तुम्हारी धमा चौकड़ी सारी रात मचाती है,
मुझको क्या सारे जग को वो पूरी रात जगाती है।
तुम भी देखते यह मस्ती जब ऐसा सपना पलता है,
तेरे विरह में मेरा यह मन मद्धम मद्धम जलता है !
जाने कितनी बाट जोहनी बाक़ी है तक़दीर में,
कब तक देखेंगे तुमको हम मूरत में तस्वीर में।
सोच सोच कर आँखों में जब सब तूफ़ान पिघलता है,
तेरे विरह में मेरा यह मन मद्धम मद्धम जलता है !