धरती माँ
धरती माँ
एक तू ही मेरा पुत्र मैं तेरी धरती माता कहलाती हूँ,
हवा पानी से तेरे जीवन को एक मैं ही महकाती हूँ,
अपने आँचल में नदियों और पर्वत को सुलवाती हूँ,
तू दूषित करता मुझको और मैं शुद्ध तुझे कर जाती हूँ,
तू मेरे सीने पर भार बढ़ाता एक पल को न शर्माता है,
मैं रत्न सारे तेरे घर में भरकर भी बिल्कुल न इतराती हूँ,
तू शोर मचाता आँखों को मेरी ऑंखें खूब दिखाता है,
मैं रोती सहती सब पर कुछ न कहती फ़र्ज़ निभाती हूँ।।