सच के हाथ होते !
सच के हाथ होते !
देर से
समझ क्यों आता है
जीवन मे अचानक आये
कुछ लोग
बस गलत ही होते हैं
आपकी जिंदगी में
और समय किसी
शुभचिंतक सा उनको
घटनाओं द्वारा ठेलता भी है
उनको आपसे दूर
असहमतियों और
उपेक्षाओं को
जता कर।
हम ही बस फंसे रहते
है व्यर्थ की मरीचिका में
जहां उम्मीद
गलत को सही होने का
भरम दिखाती रहती है
बस कुछ दूरी पर।
हम क्यों
नए से अतीत की मधुर
स्मृतियों में
ख्वामखाह उलझे हुए
देखना नहीं चाहते है
सच को जो कटु है
जो प्रत्यक्ष खड़ा है
कहते हुए हमारे सामने
तोड़ो अनुबंध
स्मृतियों के।
अफसोस होता है
क्यों समय,महज दिखाने के
सच,सिर्फ कहने के अलावा
कुछ और क्यों नहीं करता
हैं कठपुतली से हम तो
ईश्वर आखिर
समय और सच के
मजबूत हाथ क्यो नही देेता।
क्यों अच्छी
सुकून सी जिंदगी में
एक खलिश डाल दी
उलझा कर
बेमतलब की बातों में
गैर जरूरी लोगों में।
ईश्वर तुम्हारा ये खेल
नहीं भाता मुझे
मिलाना आग को फूस से,
देखना अबकी लड़ूंगी तुमसे मैं
जब भी मिलूंगी।