ए दिल सुन ले ज़रा..
ए दिल सुन ले ज़रा..
ए दिल सुन ले ज़रा हम तेरे कोई गैर नहीं,
अपना ही तो तू हिस्सा है तुझे कोई बैर नहीं
ए दिल सुन ले ज़रा हम तेरे कोई गैर नहीं
क्यों तू शीशे की तरह हर बार बिखर जाता है,
क्यों जुड़ जाता है सबसे जो भी मुंह उठाकर आता है,
क्यों थोड़े से ही नजदीकियो पर रहते जमी पर तेरे पैर नही,
ए दिल सुन ले ज़रा हम तेरे कोई गैर नहीं...
सुनता नहीं है मेरी कभी क्यों अपनी मनमानी करता है,
तेरी इस नादानी का असर मुझपर भी तो पड़ता है,
किया जो तूने फिर से ऐसा तो अगली बार तेरी खैर नहीं,
ए दिल सुन ले ज़रा हम तेरे कोई गैर नहीं...
अपना ही तो तू हिस्सा है तुझसे कोई बैर नहीं,
ए दिल सुन ले ज़रा हम तेरे कोई गैर नहीं....