अटल जी
अटल जी
ऋषि कल्प ! सदा निर्लिप्त लिप्तता रही तुम्हारी शासन में ।
हे नरपुंगव ! बीता सारा जीवन केवल अनुशासन में ।।
हे महा मनीषी ! आत्म तुष्ट !हे मानवता के उन्नायक !
हे विश्व शांति के अग्रदूत ! हे वसुधा के शांति प्रदायक!!
वीणावादिनी के वरद पुत्र ! कवि कर्म तुम्हारा है महान।।
साहित्य मनीषी ! यश:कीर्ति !तुम को मेरा शत-शत प्रणाम।।
हे संत पथिक! हे कर्मनिष्ठ! हे सर्व बन्धु! हे अनुग्राही !
हे मानवता के आराधक! पाथेय हमेशा गुणग्राही ।
हे दृढ़व्रती ! हे कुलआगार! हे राष्ट्र भारती के सपूत!
हे सच्चरित्र! हे निर्मल मति! हे भारत मां के तपः पूत!!
हे यशः कीर्ति ! है दिग दिगंत तेरा यश,वैभव, कीर्तिमान।
जन-जन करता है यशःगान, तुम को मेरा शत-शत प्रणाम।।
हे राष्ट्रशलाका ! दीप्यमान , हे महाप्राण! हे विश्वबन्धु!
नर श्रेष्ठ! मनीषा ! इंदीवर! हे कीर्तिशेष ! तुम हो अनिन्द्य ।
हे राष्ट्र ऋषि ! ऋषिकल्प मनीषी !धीर, वीर, गंभीर, अटल ।
हिंदुत्वनिष्ठ ! हे आर्य श्रेष्ठ ! हिमगिरि जैसे रहते अविचल ।।
हे कविर्मनीषी ! कृतियां तेरी है कितनी पावन ललाम।।
तुम को मेरा शत-शत प्रणाम ।।
हे वाकपटु! हे मौनव्रती, ! हे प्रखर राष्ट्रवादी नायक!
युग युग तक होगा ऋणी राष्ट्र , हे मानवता के उन्नायक!!
निष्काम तुम्हारी थी सेवा , दृढ़ व्रती ! हमेशा थे अनाम ।
हे प्रखर राष्ट्र नायक! तेरी है कीर्ति अनोखी यह प्रकाम।
तुम को मेरा शत-शत प्रणाम ।।
हे अजातशत्रु ! हे विश्व मित्र ! हे राजनीति शुचि पुरुष अटल !
हे दंभ मुक्त ! जन अहलादक! हे ज्ञानपुंज !अंतः निर्मल।
नर श्रेष्ठ ! तुम्हारी कीर्तिपताका इस जग में है दिग दिगंत।।
मानवता की लक्ष्मण रेखा रचने वाले ! तुम हो अनंत।।
नर श्रेष्ठ ! तुम्हारी मेधा , प्रज्ञा की समिधा कितनी प्रकाम ।
सद्वृत्ति अहिंसक हे तितीक्ष! निष्कलुष तुम्हारा था जीवन ।
हे दीनबंधु ! हे प्रेम सिंधु ! वैदुस्य भरा यह अंतर्मन।
हे ज्ञान चक्षु ! हे निर्मल मति! हे मानवता के कीर्तिमान!
हे सरस्वती के वरद पुत्र तेरी कीरत कितनी ललाम ।
हे मनःपूत! हे अनुपमेय !तुम ध्येय और तुम हो अहेय।
है काव्य तुम्हारा रहा गेय , निर्मेय तुम्ही हो तुम्ही प्रेय ।।
हे राष्ट्रधर्म वा पाञ्चजन्य , दैनिक स्वदेश के संपादक!
हे भारत मां के आराधक! हिंदू संस्कृति के संवाहक!!
हे जननायक! हे कुल गौरव ! भृगुकुल नायक! तुमको प्रणाम।।
हे राजनीति के शिखर पुरूष! हे राष्ट्रवाद के मान बिंदु !
चाणक्य, विदुर के हे वंशज ! चेहरे पर छलके महासिंधु।।
दैदीप्यमान आभामंडल , तेरी अजेय है कीर्ति प्रभा ।
पोखरण ,अनेकों रण जीते ,अनुकरण करेगा विश्व सदा ।।
हे कला कुञ्ज ! हे विमल पुंज ! सारा जीवन दैदीप्यमान ।।
हे कर्मवीर! हे धर्मवीर ! हे अटलवीर शत-शत प्रणाम !!