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डॉ अश्विनी शुक्ल

Classics

4  

डॉ अश्विनी शुक्ल

Classics

अटल जी

अटल जी

2 mins
424


ऋषि कल्प ! सदा निर्लिप्त लिप्तता रही तुम्हारी शासन में ।

हे नरपुंगव ! बीता सारा जीवन केवल अनुशासन में ।।

हे महा मनीषी ! आत्म तुष्ट !हे मानवता के उन्नायक !

हे विश्व शांति के अग्रदूत ! हे वसुधा के शांति प्रदायक!!

वीणावादिनी के वरद पुत्र ! कवि कर्म तुम्हारा है महान।।

साहित्य मनीषी ! यश:कीर्ति !तुम को मेरा शत-शत प्रणाम।।

हे संत पथिक! हे कर्मनिष्ठ! हे सर्व बन्धु! हे अनुग्राही !

हे मानवता के आराधक! पाथेय हमेशा गुणग्राही ।

हे दृढ़व्रती ! हे कुलआगार! हे राष्ट्र भारती के सपूत!

हे सच्चरित्र! हे निर्मल मति! हे भारत मां के तपः पूत!!

हे यशः कीर्ति ! है दिग दिगंत तेरा यश,वैभव, कीर्तिमान।

जन-जन करता है यशःगान, तुम को मेरा शत-शत प्रणाम।।


हे राष्ट्रशलाका ! दीप्यमान , हे महाप्राण! हे विश्वबन्धु!

नर श्रेष्ठ! मनीषा ! इंदीवर! हे कीर्तिशेष ! तुम हो अनिन्द्य ।

हे राष्ट्र ऋषि ! ऋषिकल्प मनीषी !धीर, वीर, गंभीर, अटल ।

हिंदुत्वनिष्ठ ! हे आर्य श्रेष्ठ ! हिमगिरि जैसे रहते अविचल ।।

हे कविर्मनीषी ! कृतियां तेरी है कितनी पावन ललाम।।

तुम को मेरा शत-शत प्रणाम ।।


हे वाकपटु! हे मौनव्रती, ! हे प्रखर राष्ट्रवादी नायक!

युग युग तक होगा ऋणी राष्ट्र , हे मानवता के उन्नायक!!

निष्काम तुम्हारी थी सेवा , दृढ़ व्रती ! हमेशा थे अनाम ।

हे प्रखर राष्ट्र नायक! तेरी है कीर्ति अनोखी यह प्रकाम।

तुम को मेरा शत-शत प्रणाम ।।


हे अजातशत्रु ! हे विश्व मित्र ! हे राजनीति शुचि पुरुष अटल !

हे दंभ मुक्त ! जन अहलादक! हे ज्ञानपुंज !अंतः निर्मल।

नर श्रेष्ठ ! तुम्हारी कीर्तिपताका इस जग में है दिग दिगंत।।

मानवता की लक्ष्मण रेखा रचने वाले ! तुम हो अनंत।।

नर श्रेष्ठ ! तुम्हारी मेधा , प्रज्ञा की समिधा कितनी प्रकाम ।

सद्वृत्ति अहिंसक हे तितीक्ष! निष्कलुष तुम्हारा था जीवन ।

हे दीनबंधु ! हे प्रेम सिंधु ! वैदुस्य भरा यह अंतर्मन।

हे ज्ञान चक्षु ! हे निर्मल मति! हे मानवता के कीर्तिमान!

हे सरस्वती के वरद पुत्र तेरी कीरत कितनी ललाम ।

हे मनःपूत! हे अनुपमेय !तुम ध्येय और तुम हो अहेय।

है काव्य तुम्हारा रहा गेय , निर्मेय तुम्ही हो तुम्ही प्रेय ।।

हे राष्ट्रधर्म वा पाञ्चजन्य , दैनिक स्वदेश के संपादक!

हे भारत मां के आराधक! हिंदू संस्कृति के संवाहक!!

हे जननायक! हे कुल गौरव ! भृगुकुल नायक! तुमको प्रणाम।।


हे राजनीति के शिखर पुरूष! हे राष्ट्रवाद के मान बिंदु !

चाणक्य, विदुर के हे वंशज ! चेहरे पर छलके महासिंधु।।

दैदीप्यमान आभामंडल , तेरी अजेय है कीर्ति प्रभा ।

पोखरण ,अनेकों रण जीते ,अनुकरण करेगा विश्व सदा ।।

हे कला कुञ्ज ! हे विमल पुंज ! सारा जीवन दैदीप्यमान ।।

हे कर्मवीर! हे धर्मवीर ! हे अटलवीर शत-शत प्रणाम !!

                                   



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