पूजा का दीप
पूजा का दीप
मैं पूजा का दीप अकम्पित,
तू प्रस्तर प्रतिमा है अविचल ।
अंतर्मन में जमी हुई है
सब अतृप्त कामना मन की।
अनमांगी भिक्षाए सारी ,
ललचाई इच्छाएं तन की ।।
मौन अधर की बिकल रागिनी,
निर्झर सी बहती है अविकल।
मैं पूजा का दीप अकंपित ,
तू प्रस्तर प्रतिमा है अविचल।।
मैं याचक की विकल याचना,
प्रणत भाव है मेरा अर्पण।
क्या लाऊं कुछ पास नहीं है
बस केवल निर्माल्य समर्पण।
कुम्हलाए पुष्पों की माला,
अनुरागी मन अर्पित पल पल।
मैं पूजा का दीप अकम्पित,
तू प्रस्तर प्रतिमा है अविचल।।
मंदिर की चौखट पर अगणित
दीप जलाने वाले आते।
कुछ स्वर लहरी लेकर जाते
कुछ केवल आँसू ही पाते।।
दृग जल से पदप्रक्षालन कर
शीतल होगा अनुराग विकल।
मैं पूजा का दीप अकम्पित,
तू प्रस्तर प्रतिमा है अविचल।।