मैं अपने आप से
मैं अपने आप से
कभी कभी अकेले में, मैं अपने आप से बातें करता हूँ,
अगर तुम्हारा साथ ना मिला होता, तो मैं कैसा होता
निश्चित तौर पर मेरा वजन, इतना तो ना बढ़ा होता
७५ किलो का ना सही, १११ किलो तो ना हुआ होता
तुम नये २ चटपटे व्यंजन, बना बनाकर खिलाती रही
और अपनी मदमाते अन्दाज़ की, मदिरा पिलाती रही
मैं खाने पीने का शौक़ीन, अदरक की तरह फैल गया
शरीर L से XXXL और, कमर का कमरा बन गया
धूम्रपान अलविदा ने भी, भार बढने में योगदान दिया,
एक व्यसन से बचने में, नयी मुसीबत में फंसा दिया
सिगरेट तो छूट गयी, लेकिन भूख को पंख लग गये,
पेट इतना बढ़ गया कि, अपने पैर दिखने बंद हो गये
रेडीमेड कपड़ों ने मुंह फेर लिया, आखिर क्या करते,
ढीले कुरते पजामे छोड़, कोई कपडे फिट नहीं बैठते
रिटायरमेंट के बाद, कुछ ज्यादा ही आलसी हो गया
और मैं Vertical कम, Horizontal ज्यादा हो गया
तुमने, ना अहम् पर चोट की, ना कभी बंदिश लगाईं,
मेरे प्रयासों में साथ दिया, हमेशा मेरी हिम्मत बढाई
तुम्हारा साथ ना होता, शायद मेरा वजन कम होता,
परन्तु निश्चित तौर पर, मेरी परिपक्वता भी कम होती
कभी कभी अकेले में, मैं अपने आप से बातें करता हूँ,
अगर तुम साथ नहीं होती, तो मैं “योगी” कैसा होता।