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Anand Ranjan

Abstract

2.5  

Anand Ranjan

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आत्मविश्वास

आत्मविश्वास

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तुम्हारी ही खोज है 

तुम्हारी ही तलाश है

जिसे ढूँढ रहा हूँ मैं 

सब कहते हैं मेरे ही पास है

फिर भी कुछ तो बात है

तुम तो अब दिखाई भी नहीं देते

ना होते हो रूबरू आजकल 

ना कभी हमें अपने ठिकाने बुलाते हो

सब कहते हैं अच्छी अच्छी बातें बताते हो तुम

पर तुम हो की मुझे सुनाई ही नहीं देते

ये अचानक क्या हो गया 

पहले तो हम अच्छे दोस्त हुआ करते थे 

फिर चाहे वो चौक की बहस हो

या हमारे खेल का मैदान 

तुम्हीं तो थे जो मुझे रोज़ जिताया करते थे

घंटो मुझसे बातें किया करते थे 

मेरी तारिफ़ें सुनाया करते थे

और जब कोई दुखी कर जाता

तो उसे बुरा बता कर हमें हँसाया करते थे

इसीलिए अब विनती है तुमसे 

एक नम्र निवेदन है

थक गया हूँ मैं अब अकेले

घट रहा मुझमे संवेदन है 

आ जाओ साथ वरना चल नहीं पाऊँगा 

जो अधूरा हो गया हूँ मैं 

अधूरा हीं रह जाऊँगा


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