ख़ता क्यूँ करवाते हो!
ख़ता क्यूँ करवाते हो!
आसान नहीं था,
उसे भूल जाना,
उसकी यादों को,
दिल से मिटाना,
हर ज़ख्म उसका,
कर देता है,
आज भी
आँखें गिली,
ऐ खुदा,
मोहब्बत की
सजा ये,
कैसी मिली!
मौला मेरे मौला
अपने बंदे से,
ऐसी ख़ता क्यूँ
करवाते हो,
उम्र भर
जो मिलता नहीं ,
उससे कमाल की
मोहब्बत करवाते हो!
महफिलों में भी,
खुद को
तन्हा महसूस
करता हूँ ,
मोहब्बत के
बारे में,
अब सोच के भी
डरता हूँ !