मुस्कान मेरे चेहरे से
मुस्कान मेरे चेहरे से
मुस्कान मेरे चेहरे से आँसू को छुपाया
एक ख्वाब उम्मीदों ने मुझे रोज़ दिखाया।
उम्मीद मुझे झूठ पर दुनिया नहीं तेरी
सच बोलने से मेरी ज़ुबान रूक नहीं पाया।
दौलत के लिए दुनिया तुझे याद ना आया
क्यो भूख से मरने को कोई भाग्य बताया।
कहता है लब से बात मगर दिल की नहीं है
साज़िश वो करता रोज़ उसे शर्म ना आया।
सोचा था जिंदगी मैं गुज़ारूँगा सबके साथ
अपना कहा मैं जिसको वही निकला पराया।
घर बार मेरा छीन लिया ख्वाब दिखाकर
महलों में वो रहता है इधर वो नहीं आया।
जलते हैं उसी आग में बेवजह लोग क्यों
ईमान की बात जिसने की घर उसने गिराया।
सौदा भी मोहब्बत का मै अंजान जान कर
वो ज़हर मोहब्बत में मुझे कैसे पिलाया।।