नारी शक्ति
नारी शक्ति
दबाने से बात यहाँ अब दब न पायेगी,
आँखें तरेरने से असलियत छिप न पायेगी,
सदियों से चल रहा जो परम्पराओं के नाम पर,
बदलाव की आंधी उसे बदल के जाएगी !
देखो- देखो जाग रही सदियों से सोयी नारी,
राख़ में दबी थी जो भड़क उठी वो चिंगारी ...!
घूँघट उतार हाथ में थामेगी ये कलम,
लहरायेगी हर क्षेत्र में जीत के परचम ,
पढ़- लिख कर समाज को देगी नई दिशा,
आँखें फ़टी राह जायेंगी जब देखोगे दमखम !
बगावत की राह पे चलने की कर ली है तैयारी,
राख में दबी थी जो भड़क उठी वो चिंगारी ...!
हो जाओ तैयार अब चाक जिगर सीने के लिए,
मर्दों की मोहताज नहीं जीने के लिए,
जिल्ल्त,ज्यादतियां बहुत बर्दाश्त कर चुकी,
तैयार नहीं अब कोई भी जहर पीने के लिए !
रणचण्डी रूप धारा अब ना कहना बेचारी,
राख़ में दबी थी जो भड़क उठी वो चिंगारी ...!