तुम कितनी नयी हो ना
तुम कितनी नयी हो ना
तुम कितनी नयी हो ना,
जैसे सूरज की धूप,
रोज़ होती है लेकिन रोज़ नयी।
तुम कितनी सुलझी हुई हो ना,
जैसे की कोई रेशम का धागा,
कितना भी करो हमेशा सुलझा।
तुमसे कितना जुड़ गया हूँ,
बिल्कुल जैसे कोई चाँद का टुकड़ा,
आके जुड़ गया हो जमी से।
तुमसे प्यार हो गया,
जैसे कि किसी बिजली तारों में,
करंट दौड़ जाता है झट से।
इस खिली हुई साँझ में,
रात रानी का फूल ऐसे महकता है,
जैसे तुम्हारी साँसों ने मेरा नाम लिया।
और इन जुगनुओं का
तो पूछो ही मत,
ये तो इसीलिए है कि,
में तुम्हें ढूंढ सकूँ।
ढूंढ सकूँ
इन पीपल के पत्तों से
बनते तुम्हारे चेहरे को।
जैसे तुम्हें लगता है कि,
ये बातें कभी खत्म न हो,
मुझे लगता है कि,
ये तुम्हारा एहसास
कभी खत्म न हो।