विशुद्ध पथ
विशुद्ध पथ
तुझे विशुद्ध पथ पर बढ़ना होगा
तुझे स्वयं से ही द्वन्द लड़ना होगा
क्या हुआ जो रक्त रंजीत हो धरा
यहाँ हर वीर को युद्ध लड़ना पड़ा।
जो ह्रदय की आग है,
वो बिना जय के नहीं बुझी
जो स्वर्ण शब्द इतिहास के,
वो बिना श्रम के नहीं लिखे।
तुझे स्वार्थ को त्यागना होगा
तुझे अश्रु हीन तो बनाना होगा
क्या हुआ जो साथ छुटे स्वजनों का
यहाँ कृष्ण को भी गोकुल त्यागना पड़ा।
तुझे विशुद्ध पथ पर बढ़ना होगा
तुझे स्वयं से ही द्वन्द लड़ना होगा
तभी विजय तेरी होगी,
दृढ पथ के वीरो सा वंदन तेरा होगा।
तभी ये स्वजन तेरे होंगे,
ये इतिहास का स्वर्ण गान तेरा होगा।