निषाद राज के दोहे - गर्मी
निषाद राज के दोहे - गर्मी
देखो गर्मी है बढ़ी, सर पे पगड़ी मार।
करे सुरक्षा आपकी, रखना इसे सँवार।।
तपन भरी है ये धरा, जीव सभी हैं त्रस्त।
मिलता तब आराम है, सूरज होते अस्त।।
बढ़ते जब हैं धूप तब, होते हैं मजबूर।
फिर भी करते काम हैं, बेबस ये मजदूर।।
तपती गर्मी देख के, मन होते भयभीत।
करते क्या अब तू बता, ऐ मेरे मन मीत।।
जीवन तो अनमोल है, रखना इसकी लाज।
पानी की मत हो कमी, प्राण बचा ले आज।।