एक वार्ड की आपबीती
एक वार्ड की आपबीती
देखो मुझे,
पहचानने की कोशिश करो,
नहीं पहचान पाओगे।
चलो मैं बताता हूँ,
मैं इस अस्पताल का
जच्चा-बच्चा वार्ड हूँ।
जानते हो,
कल यहाँ किलकरियाँ
गूँज रही थी।
नवजात बच्चे रोते हुए भी
लाड़ उभार रहे थे।
माएँ अपने बच्चों को
अपनी छाती का अमृत पिला
तृप्त हो रही थी।
सृष्टि के प्रसार में
एक सोपान सा मैं
स्वयं पर इतरा रहा था।
तभी एक चिंगारी सी उठी,
दावानल सी
निगलने लगी मुझे।
आज मैं अकेला हूँ,
उजड़ चुका हूं,
नितांत भयावह
चीखों को सुना है मैंने।
बच्चों का दम घुटते देखा है
माओं को बदहवास
होते देखा है।
एक पल में सृजन से
विनाश तक का
पूरा अध्याय पढ़ा है मैंने।
और मैं कुछ न कर पाया।
सुना है किसी से नकली
वायरिंग लगाई थी
त्रुटिपूर्ण, मानकहीन,
अस्वीकृत।
उफ्फ्फ,
किसी की करनी का दोष
मुझे अभिशप्त कर गया।
हमेशा हमेशा के लिए
इस सरकारी अस्पताल के
जच्चा-बच्चा वार्ड को।