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SURYAKANT MAJALKAR

Drama

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SURYAKANT MAJALKAR

Drama

लोगों की आदत

लोगों की आदत

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लोगों की तो आदत बुरी है

मुॅंह में राम बगल में छुरी है


द्वार ईश्वर ये दान चढ़ाये

राह भिखारी नजर न आये


हर वक्त हाथ फैलाये

निराश हो तब बोल लगाये


धन के मालिक खूब बरसाये

निर्धन को ये तुच्छ कहलाये


करे सैर जब चारों धाम

बुढ़े माॅं-बाप का करे अवमान


काला गोरा भेद ये करते

भला सावले (कृष्ण) क्यों स्मरते


राह चलाये मंहगी गाड़ी

राहगीर को कहे अनाड़ी


सरकारी टैक्स ये न चुकाये

घूस देकर देश डुबाये


सुख की नींद कैसे मिलती

दवादारु पर जिंदगी चलती


मन में भय नित्य सताये

धन की चिंता नींद उड़ाये


भला जीवन तुम भी जानो

आधी रोटी सुख की मानो


माॅं-बाप ही ईश्वर अपने

धन की लालसा बुरे सपने


व्यर्थ की चिंता त्यागो मित्रो

साथी बनो तुम दुःख के मित्रो


ये जीवन को जीना सिखाये

सुर्यांश का जीवन बनाये।।


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