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SURYAKANT MAJALKAR

Abstract

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SURYAKANT MAJALKAR

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'तुम ने हमारे लिए क्या किया?'

'तुम ने हमारे लिए क्या किया?'

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वो सुबह को चलते है,

वो शाम को ढ़लते है,

वो घर से चलते है,

वो मयक़ादे में ढ़लते है,


वो खर्चे परिवार के

और बचे शराब के

कैसे पुरे करते है?

हल तो नहीं शराब,

शौक की बात दूरतक नहीं,


फिर क्यू देर घर पहुँचते है?

घर परिवार की जिम्मेदारियाँ,

कुछ निज़ी बीमारियाँ,

कुछ बच्चों के बढ़ते खर्चे,

कुछ समाज में चलते चर्चे,

ऊठायें कितना बोझ ये कंधे,


चलते चलते झुक जाये कंधे,

इच्छाओं को बाँधकर फेक दिया,

कर्तव्य के नामपर जीवन अर्पित है,

फिर भी कल कहेंगे,

'तुम ने हमारे लिए क्या किया ?'


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