नाव सागर में...
नाव सागर में...


धूप थी छाँव थी,
लहरोंसे लड़ती थी,
सागर में एक नाव थी।
बैठा हू किनारे
चिंता से घिरे कालेमेघ
और...बस नाव थी,
भला उस नाव में कौन था मेरा ?
फिर भी हृदय विचारों का भँवर,
शायद बादल गुजर जायेगें,
लहरें सुशांत हो जायेंगी,
और प्रशांत नाव को किनारे पहुँचा देगी,
कदाचित मेरी चिंता खुशी में बदल जायेंगी,
हर कविता भी आपतक पहुँच जायेगी।