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Usha Gupta

Classics

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Usha Gupta

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अर्धनारीश्वर

अर्धनारीश्वर

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हो प्रसन्न दक्ष की तपस्या से देवी आद्या ने दिया वरदान,

लिया जन्म दक्ष और प्रसूति के घर पुत्री रूप में सती नाम से,

हुईं विवाह योग्य जब ब्रह्मा ने दिया परामर्श दक्ष को,

“ हैं योग्य वर आदि पुरूष शिव ही आदि शक्ति आद्या की अवतार सती के”

हुआ सम्पन्न विवाह आदि पुरूष का आदि शक्ति के संग 

आ गई सती प्रियतम संग करने निवास कैलाश पर।


किया भव्य आयोजन दक्ष ने यज्ञ का, दिया निमंत्रण देवी देवताओं को,

परन्तु दिया न निमंत्रण अपनी ही पुत्री सती व देवों के देव महादेव को,

थे अप्रसन्न दक्ष भोलेनाथ से।

हुई जिज्ञासा सती को देख आकाश में विमान अनेक,

करते हुए शान्त कौतूहल प्रिययतमा का शिव ने,

सुना दी कथा दक्ष के यज्ञ आयोजन की।

माँगी आज्ञा पति से सती ने जाने को पिता के घर कनखल,

 कहा पति ने बिन बुलाये न होता है उचित मायके में भी सम्मिलित होना किसी आयोजन में,

ना चली भार्या के हठ के आगे एक भी, दिया भेज गण संग सती को

न देखा बिछा आसन पति का, कारण पूछा पिता से,

किया अपमान जी भर दक्ष ने महेश्वर का, कूद पड़ी हवनकुंड में सती,

न सह सकी अपमान पति का।

 

हुईं अवतरित आदि शक्ति पुन: बनने को शिव अर्द्धांगिनी,

जन्मी पार्वती बन पुत्री हिमाचल और मैना के घर,

मुनि नारद ने की भविष्य वाणी मिलेगें महादेव वर रूप में पार्वती को,

परन्तु कर तपस्या अत्यन्त कठिन करना होगा प्रसन्न शंकर को,

किया परित्याग राजसी वस्त्रालंकार का,कर धारण वल्कल वस्त्र,

ले आज्ञा मता-पिता की किया पार्वती ने प्रस्थान गहन जंगल में,

बसे थे शिव रोम-रोम में उमा के, लगा ध्यान चरणों में प्राणप्रिय के,

लगी करने तपस्या घोर, निराहार उमा रहीं पर्ण पर,

त्याग दिया पर्ण भी, कहलाईं अपर्णा, 

“ होगा मिलन शीघ्र महेश्वर से न है कोई बाधा अब”

सुन आकाशवाणी, किया प्रस्थान अपर्णा ने भवन की ओर।


हुआ भव्य आयोजन जटाधारी शंकर और उमा विवाह का,

 जटाधारी शिव मले राख शरीर पर पहने साँप व कपाल के गहने,

चंद्रमा मस्तक पर और गंगा विराजे सिर, बैठ बैल पर चले पशुपतिनाथ,

ले बारात अनोखी, ब्याहने शैलकुमारी को,

पशु, पक्षी, साँप, बिच्छू,भूत-प्रेत, तरह-तरह के गण,

कोई बिन मुख का तो अनेक मुखवाला है गण,

बने देवी देवता सभी बाराती इस विचित्र बारात के,

लगी करने विलाप देख मैना रूप भयंकर महादेव का,

किया समाधान शंका का नारद ने कर उजागर रहस्य पार्वती का,

हैं शैलपुत्री साक्षात् जगजननी भवानी, रहती सदा यह शिव के अर्द्धांग में,

खुले नेत्र मैना के, की वन्दना अविनाशिनी शक्ति पार्वती की बारम्बार।


हुआ सम्पन्न पाणिग्रहन संस्कार आदिपुरुष का आदि शक्ति संग,

बन गईं अर्द्धांगिनी शक्ति शिव की और कहलाये शिव अर्धनारीश्वर,

लगे बजने यंत्र अनेक, लगी होने सुमन वृष्टि अम्बर से,

छाया आन्नद समस्त ब्रह्माण्ड में।

दौड़ उठती लहर हर्षोल्लास की आज भी जगत में,

मनाते महाशिवरात्री उत्सव जब शिव और शक्ति के मिलन का ।।


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