इश्क
इश्क
ये जो तुमने नाक पर सोना सजाया है
चंदा को दी है कैद क्या अपने नथुनों की
ये तुम जरा सी बात पर जो खिलखिलाती हो
कोई दर्द है तुझको या जेवर है हँसी तेरी
चरसाजी का कोई भी हुनर कमतर नहीं तुममे
मुर्दे छू लिए तुमने तो उठकर सांस लेते है
सुनो ये तन का भारी पन भी तुझपे खूब भाता है
किसी का इश्क है ये जो तुझमे फूले न समाता है