समर्पण
समर्पण
तुम्हे चाय पसंद थी और मुझे कॉफी !
तुम्हारे प्यार में मैंने कॉफी छोड़ दी
और चाय पीना शुरू कर दिया....
मैं बस तुम्हारे रंग में रंगती गयी....
मुझे स्लीवलेस स्टाइल पसंद था और
तुम कहा करते थे मुझ पर पूरी बाज़ू फ़बती है......
मैंने पूरी बाजुओं वाले कपड़े पहनने शुरू किये.....
मैं बस तुम्हारे रंग में रंगती गयी .. ....
मुझे मैचिंग इयररिंग पहनना अच्छा लगता था
लेकिन तुम्हारे कहने पर सोने की बालियाँ पहनने लगी
मुझे तुम्हारे स्टेटस का ख्याल जो रखना था !
मैं बस तुम्हारे रंग में रंगती गयी ....
मुझे वेणी में गजरा लगाना पसंद था
लेकिन मैंने गजरा लगाना छोड़ दिया
अच्छे घरों की औरतों को यह शोभा जो नहीं देता था !
मैं बस तुम्हारे रंग में रंगती गयी ....
मैंने अपनी हर चीज़ को बदल दिया....
मेरी पसंद....
मेरी नापसंद....
मेरी आदतें....
मेरा स्टाइल....
मेरा खान पान.....
मेरे तौर तरीके...
और भी बहुत कुछ......
और तुम?
तुम तो वैसे ही रहे....
तुम बिल्कुल भी न बदले....
ये कैसा समर्पण है?
ये कैसा प्यार है?
तुमने अपने सहूलियत के लिए जो नियम कायदे बनायें है
और स्मार्टली उनको लागू भी कर दिया....
कभी परम्परा का नाम देकर ....
तो कभी रिवायत कहकर......
मेरे प्यार में समर्पण था....
और समर्पण में प्यार भी.....
मैं भी प्यार और पुर्ण समर्पण से परम्पराओं और रिवायतों के रंगों में रंगती ही चली गयी ....