सच तो नहीं ?
सच तो नहीं ?
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मैं कभी नहीं
चाहती ख्वाबों में भी
तुमको स्याह रंग में
सोचना क्योंकि
तुम्हे चुना था
मैंने ही दिल के
खूबसूरत खिलते रंग में
सोचने को।
मगर उजालों में
तुम मुझे क्यों बार बार
अजनबी से दिखते हो,
क्यों जहरीला कर देते हो
मेरे खुशी का प्याला
पीने से पहले ही?!
क्यों सवाल
उठने लगा है जहन में
सही हो क्या
मेरे दिल के लिए?!
कहीं हम एक दूजे को
दूध और नमक से
तो नहीं।
उफ्फ
कहीं यही सच
तो नहीं।