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कुमार जितेन्द्र

Abstract

4.9  

कुमार जितेन्द्र

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पालनहारा

पालनहारा

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307


कभी गोद,कंधे,कभी पिठु

घोड़ा बन,मन बहलाता

अंगुली अनुशासन की पकड़े,

हमराही,बन हमसाया

मौन रहे पर बोलती आँखें,

सख़्त दिखे,है मोम का

निष्काम,निर्मोही भी,

मोही, सच्चे दोस्त सा

अपेक्षा से पहले हाज़िर,

हर वस्तु हर हाल में

आशीष सदा बुलंदी का दे,

बिना स्वार्थ,संसार में

गम के बादल की आहट पर,

खुशियों की बरसात करे

समाचार शुभ पाकर सबसे,

हर्षित हो,अभिमान करे

दामन जिसके भरे हुए,

संतान के सुख-संसाधन से

स्वर्ग-सा वो आनंद कहां,

सिर्फ़ पिता की बाहों में

जी करता है आज उकेरूं,

दिल पे छपी वो तस्वीरें

फ़िर दोहराऊं वही नादानी,

नज़र मिले,आंखें नीचे

भोली सूरत रोऊं जीभर,

बिना डांट, सज़ा मिले

आज बनाऊं सामने उनके,

वही पुराने,वही बहाने

हस्ताक्षर की खोलुं गठरिया,

उसूलों की धरी थाती

पलटू सारे बिसरे पन्ने,

मुझको लिखी वही पाती

पढ़ने बैठूं वही कहानी,

याद जो अबतक ज़ुबानी

फ़िर गाऊं वो गीत सुहाने,

रचा मेरा पालनहारा ....!


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