Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

कवि धरम सिंह मालवीय

Abstract

4  

कवि धरम सिंह मालवीय

Abstract

एक हवा का झोंका

एक हवा का झोंका

1 min
387


एक हवा का झोंका लगा था अभी तेरी चूनर भी सर से सरकने लगी

मैने चुपके से छत पर बोलाय तुझें तेरी पायल निगोड़ी छनकने लगी


दिल ने चाहा था हाथ थाम कर तेरा मैं डगर पर यू ही चलता रहू

हाथ तेरा जो थामा था मेरे हाथ में तेरी चूड़ी खन खन खनकने लगी


आओ देखों चमकते हैं चाँद तारे सभी कितने हाशि लगते है सभी

मैं जब तक दिखाता चाँद तारे उसे बिंदिया तारों के जैसे चमचम चमकने लगी 


जैसे तारों के संग आसमा मिल रहा आओ ऐसे ही मिल जाये हम 

सोचा आगोश में आज भर लू तुझे मेरी आँख अब क्यों फड़कने लगी


तेरा तन हैं कोमल कली की तरह मन हैं चंचल मछली की तरह

दोनों हाथों से मैंने जो थामा तुझे तेरी कम्मर सज़र सी लचकने लगी


तुझको कहना तो चाहा प्यार के बोल तीन पर न जाने ज़ुबा क्यों अटकने लगी


देखा जबसे तुझे दिल दिवाना हुआ लगता जैसा जगत से बेगाना हुआ

हुश्न और इश्क का ये मुज़स्समा देखकर

मेरी नजरें क्यों अब भटकने लगी


प्यार में मैने तुझको माना खुदा प्यार ही कि मैंने माँगी दुआ

तेरी इबादत जो कि नाम तेरा लिया तेरी रहमतें मुझ पर बरसने लगीं


 तेरे मिलने की कोई भी हसरत नहीं तू मिले तो किसी की जरूरत नही

 ग़ज़ल में तेरा कर के बयान हमनशीं शायरी अब धर्म की चमकने लगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract