गाँव का त्यौहार
गाँव का त्यौहार
याद आता है मुझे
मेरा देश और वो गांव मेरा
जहां चहचहाती थी चिड़ियाँ
लहराती थी वसुधरा
स्मृति है मुझे, वह गर्मी की छुट्टियां
गांव में बिताना मेरा
शहर से गांव की ओर
रेल से जाना मेरा
लहराती फसलों को देख मुस्काना मेरा
पहुँचते ही गांव की टिपट पर
वो किसी परिचित से मिल जाना मेरा
फलाने की पोती हूँ कहकर बताना मेरा
उनकी आँखों में स्नेह की अनुभूति नजर आना
बैलगाड़ी का लूफत उठाना मेरा
लहराती फसलों वाली खेतों में जाना मेरा
हरी फलियों का खेतों से चुराना मेरा
सखियों संग मेले घूमने जाना मेरा
गगरी भर पानी कुएँ से लाना मेरा
शाम जब होती तो सूरज संग दौड़ लगाते थे
कभी-कभी साइकिल पर बैठ
जमकर रेस लगाते थे
सूरज की वो लालिमा सच कहूँ तो मन को भाती थी
शाम की रोटी बनाने की फिक्र जो सताती थी
वो चूल्हे की रोटी और सरसों का साग
वो गोंडपुर की गूँजी और अपनों का प्यार
परियों की कहानी और नानी-दादी का दुलार
याद आता है मुझे वो गांव का त्यौहार
याद आता है मुझे वो गांव का त्यौहार।