STORYMIRROR

Prakash Chavhan

Abstract

3  

Prakash Chavhan

Abstract

जागा उरली ना कुठ पुन्हा शोध

जागा उरली ना कुठ पुन्हा शोध

1 min
232

*कुण कुणाच्या आनंदात 

जग गुंतलेलं फिरत असतं 

ओढ कशाची का असेना 

शोधत जीवना संबंधी मर्म*

----------------------------------------

*मना मधी कुठ स्वप्न रंगलेलं 

 वेचत वेळी धडपड चालते 

गोड तिखट खारट स्थिती

मृग सुखाचे करते उलाढाल*

----------------------------------------

*खाली वरी जिणं पथावर 

संघर्ष असतो कमी जास्तीचा 

जीव मात्र तेच वयानं पोखवत 

तरी मन चंचल आसेवर असतं *

----------------------------------------

*सुख सुखाचं नसतं अति भोग 

तराजू तोलतो कर्म काळ 

किती लढला कशासाठी रिकामा 

जागा उरली ना कुठ पुन्हा शोध*

----------------------------------------


Rate this content
Log in

Similar marathi poem from Abstract