ज़मीन का हक़
ज़मीन का हक़
"कर्नल साहब! ये ज़मीन और मक़ान हमें बेच दो, हम आपको कहीं और ज़मीन और मकान दिलवा देंगे" एक अच्छी कद-काठीवाले जवान आदमी ने एक वयो-वृद्ध व्यक्ति को क़रीबन धमकाते हुए कहा! "नहीं बेटे! ये ज़मीन और मकान मेरे पुरख़ों की है, तो मैं ये ज़मीनो-मक़ान आपको नहीं दे सकता!" उस वृद्ध ने ये बात बहुत ही इत्मिनान से परन्तु वज़नदार अंदाज़ में कही! "कर्नल साहब! आप फ़ौजी ही इसलिए इज़्ज़त से बात कर रहे हैं, वरना आपको पता है न हम महादेव-सेना के लोग हैं, ये काम ज़बरदस्ती से भी हो सकता है!" उसी जवान व्यक्ति ने जैसे ही ये बात तेज़ आवाज़ में कही कर्नल साहब का अंदर का सैनिक जाग उठा और जवान व्यक्ति के बराबर के लहज़े में ही उन्होनें प्रत्युत्तर दिया,"देखिये अब तक मैं तमीज़दार होकर बात कर रहा हूँ, मुझे मजबूर मत कीजिए आपकी शिकायत करने के लिए!" वो जवान व्यक्ति थोड़ा सकपका गया मगर जाते-जाते भी हाथ के इशारे से धमकी दे गया!
"मन्नू भाई! देखो ये कर्नल क्या भेज रहा है कॉलोनी के व्हाट्सप्प में, ये तो अपने नेता जी का मज़ाक उड़ा रहा है!" चमचे ने जब वो मैसेज दिखाया तो मन्नू की आँखें चमक गयीं जो काम वो कर्नल से सुबह नहीं करवा पाया था उस काम के परिपूर्ण होने के गुंजाईश अब उठ चुकी थी!
कर्नल साहब के घर की घंटी बजी, चेहरे पे ऊहापोह के भाव लिए वो उठे और दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गए! जैसे ही उन्होनें दरवाज़ा खोला मन्नू को सामने पाया और ठंडी आह भरते हुए उन्होनें कहा,"बेटा! आपको कई बार समझा चुका हूँ कि ये घर और ज़मीन दोनों बिकाऊ नहीं है!" उन्होनें इतना ही कहा था कि मन्नू ने उन्हें बाहर निकाला और मारना शुरू किया! सैनिक मनोवृ
त्ति ने शुरुआत में अकेले मन्नू का प्रतिरोध किया मगर सँख्या बल बढ़ने से और उम्र के असर ने उनके प्रतिरोध को कुंद कर दिया! "हमारे भैया जी का मज़ाक उड़ाएगा तू, ये ले मा@##$#%$, मारो साले को!" मन्नू ने उस कृशकाय शरीर को लातों से मारते हुए कहा! उनको लहूलुहान और अधमरी हालत में छोड़कर वो लोग चले गए!
कर्नल साहब को अस्पताल में भर्ती करवाया गया और स्थिति गंभीर होने से पहले ही उनका यथोचित इलाज कर उनको बेहोशी से होश में ले आया गया! इस मारपीट के अगले ही दिन इंस्पेक्टर कर्नल साहब के पास आये, उन्हें इत्मिनान हुआ कि किसी भलेमानस ने उन्हें ख़बर कर दी है ,इस है परन्तु जैसे ही इंस्पेक्टर ने मन्नू के गुर्गे की एक तस्वीर दिखाई जिसमें वो अधमरा पड़ा हुआ है और बताया कि सामनेवालों ने आपके ख़िलाफ धारा ३२०, ३०७ और ५०६ के तहत तहरीर दी है, जिसमें से धारा ३०७ यानि कि हत्या का प्रयास गैर-ज़मानती है! कर्नल साहब ठीक होने पे कारागार गए, ज़मानत के लिए मुक़द्द्मा लड़ा, ज़मानत ली! पैसे जितने भी कमाए थे वो मुक़द्द्मा ले जाने लगा और अंततः मुक़द्दमा लड़ने की ख़ातिर उन्हें अपना मकान और ज़मीन बेचनी पड़ी! कर्नल साहब निःसंतान थे और जैसे-तैसे सालों लड़ने पर मुक़द्द्मा जीते पर रहने के लिए उन्हें वृद्धाश्रम में जगह लेनी पड़ी! आज उनकी ज़मीन पे एक बहुत बड़ा होटल खुला है और सबको पता है ये होटल भैया जी का है! कर्नल साहब हताश थे कि जिस ज़मीन को बाहरी दुश्मनों से बचाया वही ज़मीन उनकी, अंदर के दुश्मन खा बैठे! कभी न हारा, आज हारा महसूस कर रहा था, वो भी अपनों से! वो किंकर्त्तव्यविमूढ़ थे कि ज़मीन पे असली हक़ किसका है उनका या फिर भैया जी का?