यंत्रवत-तथागत 2070 (लघुकथा)
यंत्रवत-तथागत 2070 (लघुकथा)
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यंत्रवत-तथागत 2070 (लघुकथा) :
"यूँ क्या देखते हो, यथागत?"
"सूरत तुम्हारी!"
"अब क्या चाहते हो यथावत?"
"सीरत तुम्हारी!"
"हा हा हा ... लगती नहीं थी, ये नीयत तुम्हारी! बेअसर रही हर नसीहत हमारी!" नाराज़ प्रकृति ने सन 2070 ई. में पहुँचे अतिविकसित उस मानव से पूछा, जो प्रकृति की असली नैसर्गिक सूरत को देखने के लिए तरस रहा था डिजिटल तकनीकी युग के उपकरणों और संसाधनों की ग़ुलामी से जकड़ा हुआ यंत्रवत सा।
(मौलिक, स्वरचित, अप्रसारित व अप्रकाशित)
शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
[16-09-2020]