यह कैसी दया ?
यह कैसी दया ?
पास के महिला तपस्वियों के आश्रम में, रात गए पुरुषों के आने जाने से कुसुम वाक़िफ़ थी, इसलिए जब भी रात को उठती, तो बत्ती बिना जलाए, अंधेरे में ही चुपचाप पानी पीकर सो जाती। वह अंधेरे में पानी का गिलास मुँह तक लाई ही थी कि उसकी नजर खिड़की से नीचे पहुँच गई। एक बूढ़ी तपस्विनी उस युवा नई तपस्विनी को चुपचाप गेट तक लाई। दाएँ-बाएँ देखकर धीरे गेट खोला और उसे बाहर करके हाथ से जाने का इशारा किया। नई तपस्विनी मुड़ी और धीरे-धीरे दृष्टि से ओझल हो गई।
कुसुम सोच रही थी- रात के अंधेरे में, क्या यह आश्रम के बाहर भी सुरक्षित रहेगी ?
