देवी
देवी
वीणा ने अब तक नेहा के दस पैसे नहीं लौटाए थे। सब सहेलियां उसे- दस्सी-दस्सी चिढा रही थीं। एक पेड़ के नीचे गुस्से में बैठी वीणा
अचानक काँपने लगी और जोर - जोर से झूमती हुई चिल्लाने लगी-
"बुलाओ राधा को , नेहा को , रत्न को"
पहले तो किसी को समझ नहीं आया फिर कोई चिल्लाया-
"देवी आई है "
स्कूल की सारी छात्राएँ इकट्ठा हो गईं।
एक शिक्षिका ने तीनों सहमी हुई लड़कियों को देवी के सामने बिठा दिया - फिर गाल पर देवी का जोर का झापड़।
इतने में चपरासी चिल्लाया- "बंद कर ये नाटक, ऐसे कचरे में भी कहीं
देवी आती है ?"
तब तक प्राचार्या भी आ चुकी थी।
नीचे मुंह किये हुए , शरम से गाल सहलाती उस लड़की की ओर देखा फिर गुस्से में उस शिक्षका को।
