ये कैसा अहसास
ये कैसा अहसास
मान्या के लिए नए कपड़े, महँगे जूते, सुंदर गहने, बढ़ियाँ श्रिंगार ही जीवन की ख़ुशियाँ थी। होस्टल में रह कर पढ़ाई पूरी की और फिर नौकरी भी दूसरे शहर में मिलने से वह अकेली ही रहती थी। त्योहारों में कभी घर आती और कभी छुट्टी ना होने के कारण दोस्तों के साथ ही त्योहार मना लेती। अपनी दुनिया में बहुत खुश थी और मौज-मस्ती को ही जीवन मानती थी।
माँ कई बार शादी के बारे में कहती तो उन्हें यह कह कर टाल देती की अभी जल्दी क्या है। दोस्त तो बहुत थे मान्या के पास, जितनी लड़कियाँ दोस्त थीं उतने ही लड़के भी दोस्त थे। इस बार ऑफ़िस में काम ज़्यादा होने के कारण मान्या को छुट्टी नही मिली इसलिए होली उसे यहीं मनानी पड़ी थी।
मान्या ने कभी कल्पना भी नही करी होगी की इस होली उसके साथ कुछ ऐसा हो जाएगा। होली के दिन वह रंग-गुलाल ले, सोसाइटी की होली में शामिल होने नीचे आई। वहाँ पड़ोस के फ़्लैट वाली आँटी मिलीं, उन्होंने अपने बेटे से परिचय कराया जो होली मानने सिंगापुर से घर आया था। आँटी यहाँ अकेले ही रहती है, अंकल का देहांत दो वर्ष पहले हुआ था। तब तो उनका बेटा यहाँ ही था लेकिन पिछले छः महीने से वह ऑफ़िस के काम से सिंगापुर में है। आँटी बहुत खुश थीं उसके आने से। सभी ने जम कर होली खेली और मज़े किए।
अब आँटी के बेटे का मान्या से बार बार टकराना शुरू हो गया था, कभी लिफ़्ट में तो कभी सोसाइटी के लॉन में, कभी फ़्लैट के कोरिडोर में तो कभी टैक्सी स्टैंड पर। कभी अगर वह नही दिखता तो मान्या का मन अधीर हो उठता। वह समझ ही नही पाती की ये क्या अहसास है। आँटी की परखी नज़रें अपने बेटे के मनोभाव को समझ रही थीं और मान्य के हाव भाव भी भाँप रहीं थी। आँटी ने मान्य की माँ से सम्पर्क किया। उन्हें बताया कि मान्या और उनके बेटे पर इस साल होली के रंग कुछ गहरे पड़े हैं। अब आगे की बात करनी चाहिए। झटपट दोनो माओं ने अपने बच्चों से रज़ामंदी ली और सगाई हो गई।
मान्या अब महसूस करने लगी थी कि उसके जीवन में किसी के आने के बाद अब उसकी ख़ुशियों के मायने बदल गए हैं। अब उसके इंतज़ार में बेचैन होने में ख़ुशी मिलती थी तो कभी उससे मिलने पर तो कभी उसके फोने के आने पर। इस बार की होली यादगार हो गई।

