ये दोनों

ये दोनों

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आखिर ऐसा क्यों होता है ? क्यों हाथों से सब छूटता जाता है ? क्यों ज़मीन तक पैरों तले खिसकती हुई लगती है ? ऐसे कई सवाल हैं वो तो फिर भी समझ में आते हैं मगर उन सवालों का क्या करूँ जो सवाल भी है, जवाब भी है फिर भी किसी सवाल का जवाब नहीं मिलता लेकिन इस तरह के सवाल पैदा ही क्यों होते हैं जिनके जवाब होकर भी नहीं होते, यह कैसा द्विमुखी संघर्ष है जो टेंशन ही क्रियेट करता है लेकिन सोल्यूशन नहीं ! इन्हीं बातों में खोई - खोई अपने रोज़मर्रा के काम भी किये जा रही थी लेकिन सब यूं ही अस्त-व्यस्त-सा राम भरोसे चल रहा था, दूध जल कर कोयला हो गया, पतीला एकदम काला हो गया, जलने की बास और धुआँ चारों ओर फैल गया, तंद्रा टूटी उधर मोबाइल की घंटी बजी, नंबर अननोन था फिर भी उठा लिया, आवाज़ पहचानने की कोशिश की पर पहचाना नहीं तो पूछा - माफ़ कीजिए, पहचान नहीं पा रही हूं !

     "अरे विभा की बच्ची, अपनी नकचढ़ी यार को भूल गई ?

     ओओओ पूजा मेरी नकचढ़ी, कहां थी इतने लंबे अरसे तक ? 

     कहां जाऊंगी, यहीं इसी दुनिया में ही हूं !

     फिर भी, तेरा तो कोई अता - पता ही नहीं था, कहां हो ?"

     भूटान, पिछले तीन सालों से वहीं थी ! ललित भूटान बिजनेस के सिलसिले में गया था, भूटानी लड़की भा गई, शादी कर ली, लड़की एकबार आई थी अंबाले फिर दोबारा नहीं आई, हमेशा के लिए ललित को भी ले गई ! हम दोनों अंबाले ही रहे, कभी-कभी भूटान चले जाते थे एकाध महीने में लौट आते थे तब रोमा अच्छी तरह से पेश आती थी मगर चार साल पहले मिस्टर इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए ! उनके जाने के एक साल बाद भी अंबाले ही रही थी पर एक बार बहुत बीमार पड़ गई तो ललित को आना पड़ा, एक महिना लग गया मुझे अस्पताल में, अकेली हूं यहां, फिर हारी-बीमारी कौन देखेगा ? मैंने बहुत ना कहा पर वो माना ही नहीं, जाना पड़ा। अब तक वहीं थी पंद्रह दिन पहले ही लौटी हूं।  

     "कितने दिन यहां है ? बिना मिले जाना मत, वरना..

     वरना- वरना कुछ नहीं, फिकर नाॅट, अब इधर ही हूं।

     क्यों, वहां का पानी रास नहीं आया ?

     यही समझो", कहकर एक लंबी सांस ली जिसमें मायूसी, बेचारगी साफ झलक रही थी!

     "क्या बात है मेरी नकचढ़ी ?"

     "कुछ खास नहीं, वही औरतों की बातें ! यार ये औरतें खुद को कब समझेंगी ! दुनिया के किसी भी कोने में चले जाओ, औरत ही खुद की दुश्मन बनी हुई है, यहां भी सास - बहू का पलड़ा हमेशा भारी रहता है कहीं सास बहू को फूटी आँखों नहीं भाती तो कहीं बहू सास के अत्याचारों का शिकार, अब भला '' खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर '' कटना तो हर हाल में खरबूजे को ही ! यही बात औरत समझ नहीं पाती है या फिर समझकर भी नहीं समझती है ! 

दोनों बातें है, कहीं समझती नहीं तो कहीं समझना नहीं चाहती, उस वक्त उसका ईगो उसी से टकराने लगता है।

      "विभा, अब तू पहेलियां न बुझा, ईगो खुद से कैसे टकराएगा ?"

     " अरे नकचढ़ी तू तो दादी होकर भी बुद्धु ही रही, मेरी जान एक औरत का ईगो दूसरी औरत के ईगो से टकराता है तभी तो प्रोब्लेम शुरू होती है, सच कहूं तो इस बात को मैं कहां समझ पाई थी अब तक ! अब पहले तू बता अपनी प्रब्लेम !"

       "यार, अब मुझे भी समझ में आ रहा है, ये प्रोब्लेम है ईगो की, पर यार अपनी भी तो सेल्फ रिस्पेक्ट होती है !"

        "हांआआ, होती तो है लेकिन किसी को तो समझदारी दिखानी होगी, देख, सास अनुभवी होती है जबकि बहू इतनी नहीं, सास से छोटी जो होती है और ऊपर से जवान खून, फिर सास से अपनापन भी तो नहीं होता, कभी तो पूरी जिन्दगी बीत जाती है लेकिन बहू बेटी की पादान तक पहुंच ही नहीं पाती है, दूसरी तरफ़ सास का भी यही हाल है, अपनी बेटी के चक्कर में वो बहू की माँ बन ही नहीं पाती है !"

      

"लेकिन जहां कोई बेटी होती ही नहीं सिर्फ एक बेटा या दो - तीन बेटे हो तो वो बेचारी सास तो अपनी बहू में ही बेटी तलाशती है लेकिन वहां बेटी कहीं नज़र ही नहीं आती ! मेरे मामले में तो यही है, मेरा तो एक ही बेटा है फिर भी रिश्ता नहीं पनपा ! हालांकि मैंने बनाने की बहुत कोशिश की लेकिन हर कोशिश नाकाम ही रही तभी तो लौटना पड़ा ! चल छोड़ यार, अब तू अपनी बता।"

"कुछ नहीं यार वही, तेरा फोन आने से पहले मैं इसी उधेड़बुन में डूबे सवालों से घिरी थी कुछ इस तरह से कि दूध जल कर कोयला हो गया ! वही यार घर-घर मिट्टी के चूल्हे ! कभी कोई ऐसी बात हो जाती है कि तीर की तरह कलेजे में छेद करती है बहुत संभालने पर भी, न चाहते हुए भी बेचारा ईगो हर्ट हो ही जाता है, मेरे साथ भी यही हुआ है सच कहूं तो अपनी तरफ से बेवजह की बातों में मैंने कभी पहल नहीं की..हां, कभी ऐसा कुछ सहन नहीं हुआ तो बाद में एकाध बार मेरे मुंह से कुछ निकल गया तो बस, अभी पंद्रह दिन पहले की बात है, लगभग रोज़ बिना किसी बात के सीमा बच्चों पर , मोहन पर कभी मुझ पर चिल्ला पड़ती है, बच्चे भी बड़े हैं धीरु चौदह का और चेतन सोलह साल का, यह किशोरावस्था तो वैसे ही बहुत नाज़ुक होती है, सीमा अच्छी है , समझदार है फिर भी कभी - कभी पता नहीं क्या हो जाता है, बात - बात में गुस्से से भरी चिल्ला-चिल्ला कर बात करती है, अरे बात क्या करती है बल्कि चिल्लाती है"

उस दिन दोपहर में बाजार से लौटी और आते ही मुझ पर चिल्ला पड़ी - "क्या जरूरत थी ये सब पसारा करने की, मुझसे नहीं होगा ! बाई भी नहीं आई तो दूसरी से ही नहीं कराया अब कौन करेगा ?" जिस बात पर हंगामा किया उस बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं था मुझे , यूं ही बिना सोचे समझे चिल्ला पड़ी थी, मैंने कहा भी..."भाई , मुझे मालूम नहीं था कुछ भी अगर पहले बताया होता तो", मेरी बात बिना सुने ही चालू रही। शाम को किसी खाने की चीज़ को लेकर बच्चे पर वही चिलमचाली शुरू, बच्चे को बुरा लगा तो उसने भी गुस्से से बोल दिया - "आपको बात करने का सेंस नहीं है" ! ‌बच्चे से फिर कुछ नहीं बोली लेकिन जब मैंने कहा - "तुम आजकल गुस्से में चिल्लाकर बात करती हो, मुझसे भी आज बाई को लेकर ऊलझ पड़ी",

मैंने कहा - "ऐसे क्या हर समय सब पर गुस्सा करती रहती है, मुझपर भी बेबात चिल्लाना तो आम बात हो गई है" बस... यूं ही थोड़ा हाॅट टाॅक हो गया, मुझे अच्छा नहीं लगा, मैं अपने कमरे में जाने लगी दो चार कदम आगे बढ़ी तो बोली, 

'' झगड़ा करने आई थी '' मुझे बहुत ही अखरा , पीठ पीछे क्यों, जो कहना , सामने कहो ! फिर थोड़ी तू तू मैं मैं फिर मोहन हम-दोनों पर, खासकर मुझपर चिलाया, कोई गटर में गिरता है आप क्यों गिरते हो ! बस इस बात पर हम दोनों से बात नहीं करती ऊपर से मुझपर यह तोहमत भी कि मेरे कारण उन दोनों में झगड़ा होता है कुछ पूछू, कहूं, समझाऊं लेकिन वो तो बात करने को तैयार नहीं उठ के चली जाती है वैसे बात भी ऐसी कोई खास नहीं थी मगर उसकी इस तरह की सोच ने मुझे झकझोर दिया ! हालांकि रोज़मर्रा की जिन्दगी में भी हमारी ज्यादा बातचीत नहीं होती बस ऐसे ही काम की दो चार बातें हो जाती है बाकी हम दोनों अपने अपने काम में बिजी रहते हैं वो अपने कमरे में और मैं अपने में ! बीच बीच में कभी-कभार हो जाती है बातचीत बंद लेकिन कुछ पूछने पर जवाब दे देती है, मगर इस बार तो कोपभवन से निकलने का नाम ही नहीं ले रही है ऊपर से उसके इल्जाम ने मुझे तोड़ कर रख दिया है बुरी तरह से ! तुम्हारी ही तरह मैंने अपना जीवनसाथी पांच साल पहले खो दिया, इनका न रहना बहुत ही खलता है ये थे तो मेरे आधार थे , संबल थे..अकेलापन तो नहीं लगता था ऊपर से बेचारगी का आलम !"

कहते-कहते विभा रो पड़ी, आगे कुछ बोल ही नहीं पाई, कुछ देर फोन पर चुप्पी रही फिर पूजा ने खुद को ठीक किया और बोली -

"अरेरेरे, अपनी नकचढ़ी को रुलाएगी क्या? अरे मेरी माँ बाढ़ आ जायेगी तो मोबाइल बेचारा बह जाएगा, दूसरी तरफ़ रोते-रोते भी विभा की हँसी छूट गई, देखा ये हुई ना काॅलेज वाली , पल में सोल्यूशन देने वाली विभा ! तेरी नकचढ़ी की स्थिति भी तेरे ही जैसी है, मुझे लगा था हम दोनों के घर का कल्चर अलग है लेकिन नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। यहां दो बातें सामने आ रही है - एक जनरेशन गॅप और दूसरी सास-बहू ! जाहिर है विचारों का अन्तर होगा ही ऊपर से सास नामक हौआ भी तो होता है!"


"हां तुमने बिल्कुल सही समझा ! यही सबसे बड़े दो कारणों है जिन्हें ये दोनों ही सुलझा सकती है तीसरा कोई नहीं, वरना एक-दूसरे से शिकायतें , नाराज़गी और तोहमतें !

लेकिन ताली एक हाथ से नहीं बजती पूजा, क्या मैंने कोशिश नहीं की होगी ?"

"अरे यार, जितनी कोशिशें मैंने की मगर कई बार इन्हीं कोशिशों ने काम बिगाड़ दिया कुछ ऐसे कि पासा ही पलट गया जैसे मैं ही कुसूरवार हूं, मोहन भी यही सोचने लगा है अभी कल ही की बात है वो फैक्ट्री से आया तब मैं किचिन में अपने लिए चाय बना रही थी सो पूछ लिया चाय के लिए तो पता नहीं क्यों, लेकिन उसने ऐसा कड़क कर जवाब दिया - नहीं, आपको बीच में घुसने का कुछ ज्यादा ही है, आप अपनी पीयो हम अपना देख लेंगे ! सच में नकचढ़ी क्या कहूं तुमसे, चोट बहुत गहरी है , सहन नहीं हो रहा है इसका दर्द !"

"विभा ,यही सब कारण है जो मुझे भी भूटान से अंबाले ले आये यहां कम से कम बेचारापन तो नहीं लगता, अकेलेपन में भी अकेलापन नहीं लगता !

लेकिन सोल्यूशन यह तो नहीं है ना कि अपने बच्चों से अलग सेटल हुआ जाए, उनसे अलग रहकर तो मन उन्हीं में लगा रहेगा और फिर जब कभी बीमारी या कमजोरी ने घेर लिया तो, इन्हीं का सहारा लेना पड़ेगा तब बेचारगी जीने नहीं देगी इनके रवैए भी उबरने नहीं देंगे तब ?"

"हां विभा , यह तो कभी मैंने सोचा ही नहीं बात तो सही है तेरी, आखिर अपने बच्चों के सहारे ही तो रहना पड़ेगा, फिर वही सवाल आड़े आ रहा है आखिरकार इस समस्या समाधान क्या है ?" 

"वही, ये दोनों औरतें जिनमें सास - बहू का रिश्ता है ! इसके अलावा दूसरा कोई सोल्यूशन या विकल्प नहीं ! पुरूष का बीच में कोई रोल ही नहीं है बल्कि वो तो झगड़े से उकताया हुआ माँ पर झल्ला पड़ता है, अधिकार ज़ोर भी तो उसी पर जो ठहरा । इसलिए तीसरे का कोई रोल नहीं बल्कि ये दोनों खुद ही खुद की रोल माॅडल है !" 

तू कितना अच्छा तथ्यों को समझती है तभी तो काॅलेज के जमाने से जीनियस रही है इसलिए सब दोस्तों की लीडर भी और गाइड भी ! आज ही मिलते हैं..

       "ठीक है आजा घर पे

       नहीं, घर पर नहीं बाहर मिलते हैं ।

       ओके जान चलो आधे घंटे में मिलते हैं , मूवी चलते हैं !"

       "अरे, तुम्हें आज भी याद है मूवी में मिलना ? वाआआओ वंडरफुल !"

       "अब ज्यादा इतरा मत, फोन रख जल्दी निकल !"

       "ओके बाॅस," कहते हुए पूजा घर से निकल पड़ी अपनी सखी से मिलने ! इन दोनों के प्यार का भी अनोखा अंदाज है, ये दोनों खुद भी तो कम नहीं !

                                        


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