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Anita Chandrakar

Romance

4.5  

Anita Chandrakar

Romance

#यादें1भाग

#यादें1भाग

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आज गर्मी ने रौद्र रूप धारण कर लिया है,

मेरा सिर दर्द से फटने लगा है।

क्या करूँ कूलर भी तो काम नहीं कर पा रहा।


अप्रैल का महीना याद है ना तुम्हें एग्जाम की चिंता में

बुक्स और नोट्स के लिए कैसे घूमते थे सब लोग दुकान दुकान में।

उस दिन पैदल पैदल कितना चले थे हम दोनों,

धूप के मारे मेरा सिर चकराने लगा था,

पर कुछ बोल ही नहीं पा रही थी मैं।


जब स्थिति गंभीर होने लगी तब वही सड़क किनारे बैठ गई।

तुम्हें उस वक़्त कुछ समझ नहीं आया,

और चलने की जिद करने लगे।

मैं इतना ही बोली, "तुम्हें पता है ना मेरा सिर दुखता है

इतनी तेज धूप और गर्मी

में।"


तुम मेरा जवाब सुनकर हँसने लगे,

"अरे झाँसी की रानी का भी सिर दुखता है।"

मैं गुस्से में अपना बैग पटक दी।

तब तुम्हें अहसास हुआ कि सच में मैं परेशान हो रही थी।


"अरे मुझे कैसे पता होगा कि धूप में तुम्हारा सिर दुखता है,

तुम तो पहली बार मेरे साथ आई हो। चलो अब छाया में।"

मैं भी मन ही मन अपनी बेवकूफी के बारे में सोचने लगी।


उस दिन मैं जान गई तुम दिल से बहुत अच्छे हो।

मेरी इतनी परवाह करना, मेरी तक़लीफ़ को दूर करने की कोशिश

और तुम्हारे साथ पी हुई वो लस्सी तो मैं

कभी नहीं भूल सकती।

काश आज भी तुम मेरे पास होते।


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