मिनी
मिनी
श्यामू को पालतू जानवरों से बहुत प्यार था।हालांकि अभी वह केवल दस साल का बालक था फिर भी अपने ग्वाले के साथ गायों की देखभाल करता था। गायों और बछड़ों को पैरा भूसा , घास , खली चूनी खिलाना ,पानी पिलाना श्यामू को बहुत अच्छा लगता था। वह गैया और बछड़ों को उनके नामों से बुलाता था।उनकी आवाज सुनते ही सब के सब रंभाते हुए दौड़े चले आते थे उसके पास, और श्याम बड़े प्यार से उन सबके ऊपर हाथ फेरता था। कभी उनके माथे को खुजला देता। वे सब भी अपनी जीभ से उसे चाँट कर अपना प्यार दिखाती थी। रंभा, चाँदनी ,लाली और नन्दी यही उसके दोस्त थे।
स्कूल की घन्टी उसके घर तक सुनाई पड़ती थी। जब घन्टी की आवाज उसके कानों में पड़ती तब उसको ख़्याल आता कि उसे स्कूल जाना है। वह झटपट तैयार होता और स्कूल की तरफ भागता। उसकी माँ उसे समझाते समझाते थक गई थी पर श्यामू के कान में जूँ तक नहीं रेंगता था। गाँव की गलियों में मिलने वाले हर पशु पक्षियों को वह प्यार से देखते रहता।कभी पिल्ले को घर ले आता ,कभी बिल्ली के बच्चे को, कभी किसी घायल चिड़िया को। बाकी बच्चे जानवरों को पत्थर फेंककर मारते तो श्यामू का दिल पसीज जाता।अपनी माँ से कहकर मरहम पट्टी करवाता और उसका ख़्याल रखता।
उस छोटे से बच्चे के मन में न जाने कहाँ से इतनी दया आ गई थी।वह बड़ा होकर पशु पक्षियों की सेवा और देखभाल करना चाहता था।
एक दिन वह बिल्ली के बहुत ही छोटे बच्चे को घर ले आया उसका नामकरण भी कर डाला। उसका नाम रखा 'मिनी' , अब उनकी मंडली में मिनी भी शामिल हो गई।
उसकी माँ को बहुत गुस्सा आता था ,क्योंकि वह जगह जगह गंदगी कर देती थी और श्यामू पढ़ाई लिखाई छूकर दिन भर श्यामू मिनी के पीछे लगा रहता था। " पहले गाय बकरी अब बि
ल्ली भी, "बेटा तुम अपनी पढ़ाई कब करोगे, जाओ इसे बाहर छोड़कर आओ ,नहीं तो मैं इसे कहीं फेक दूँगी ," माँ ने कहा।फेकने की बात सुनकर श्यामू डर गया , वह मिनी को पास के बगीचे में छोड़ आया। अगले दिन सुबह वह उसे देखने गया , वह उसे इधर उधर ढूँढता रहा, अचानक उसने देखा एक कोने में मिनी मरी पड़ी थी।वह वही बैठे बैठे रोता रहा, फिर घर आकर चुपचाप बैठ गया। माँ ने पूछा - "क्या हुआ क्यूँ मुँह उतारे बैठा है ? चल तैयार हो और स्कूल जा।"
"माँ मिनी मर गई, अब मैं किसी पशु पक्षी को घर लेकर नहीं आऊँगा" ,श्यामू ने कहा।
एक दिन गुरुजी कक्षा में बच्चों से पूछ रहे थे "बताओ रामू तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो।"
"गुरुजी मैं इंजीनियर बनना चाहता हूँ।"
"अच्छा रमेश तुम क्या बनना चाहते हो?", जी गुरुजी मैं शिक्षक बनना चाहता हूँ।अब श्यामू तुम बताओ, क्या बनना चाहते "
"गुरुजी मैं पशु पक्षियों की अच्छे से देखभाल करना चाहता हूँ।इसके लिए क्या बनना होगा।"
गुरुजी ने कहा - "बेटा इसके लिए तुम्हें पशु चिकित्सक बनना पड़ेगा। जिसके लिए खूब पढ़ाई करनी पड़ेगी। अगर तुम बड़े होकर सही तरीके से उसकी देखभाल और इलाज करना चाहते हो तो तुम्हें मन लगाकर पढ़ना होगा। वैसे तो अभी भी तुम उनकी सेवा करते हो पर अगर पशु चिकित्सक बन गए हो बीमार पशुओं का इलाज भी कर पाओगे।" छोटे से बच्चे के मन में गुरुजी की कही बात बैठ गई।बच्चों का मन तो गीली मिट्टी की तरह होता है जैसा चाहो वैसे ढाला जा सकता है। उस दिन के बाद श्यामू मन लगाकर पढ़ाई करता । घर में भी अपनी पढ़ाई के लिए समय निकालता। रंभा ,चांदनी, लाली और नंदी को याद किया हुआ पाठ सुनाता। श्यामू को पढ़ते देख अब घर वाले भी खुश थे।