भूल
भूल


किसी गाँव के सरकारी स्कूल में सोनू, कक्षा आठवीं का छात्र था। वह बहुत ही सीधा-साधा और होनहार छात्र था । उसके स्कूल की ख्याति दूर दूर तक फैली थी, कारण था वहाँ के प्रतिभावान बच्चों की उपलब्धि और स्कूल का अनुशासन। उसके स्कूल में गणित विषय के एक नए शिक्षक 'दत्ता सर' आये। वे दिखने में काफी ऊँचे पूरे और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। बच्चों के बीच दत्ता सर के बारे में चर्चा चल रही थी। पहले ही दिन वे सोनू की कक्षा में गए। उनको देखते ही सभी बच्चे अपनी जगह में खड़े हो गए। ऐसा अनुशासन देख और सम्मान पाकर दत्ता सर के चेहरे में मुस्कान ख़िल गई। अचानक उनकी नज़र सोनू पर पड़ी जो कुर्सी में ही बैठा था। क्रोध से वे तिलमिला उठे। गुस्से में वे उनके क़रीब गए। सोनू फिर भी नहीं उठा। "तेरी इतनी हिम्मत, शिक्षक के सामने भी बैठा है। तू खड़ा नहीं हो सकता क्या ?" दत्ता सर ने कहा ।
सोनू कुछ नहीं बोल पाया। वह कोई सफाई दे पाता उससे पहले ही दत्ता सर ने 'आव देखा न ताव', और पास में पड़ी छड़ी उठाई और उनकी हथेलियों को पीटना शुरू कर दिया। पूरी कक्षा में डर के मारे सन्नाटा छा गया। तभी एक बच्चे ने घबराते हुए कहा, " सर जी सोनू खड़ा नहीं हो सकता।" दत्ता सर ने पूछा, " क्यों खड़े नहीं हो सकता, क्या उसके पैर टूट गए हैं ?" सर वह बचपन से ही खड़ा नहीं हो सकता।" उस बच्चे ने कहा। दत्ता सर ने सोनू की ओर देखा, उनके आँखों से अश्रु की अविरल धारा बह रही थी। फ
िर उनके पैरों की ओर नज़र डाला। उसे देखकर उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ। पश्चाताप की अग्नि में वे जलने लगे, उनका हृदय द्रवित हो उठा। वे ख़ुद को रोक नहीं पा रहे थे। दत्ता सर की आँखों से भी आँसू बह निकले। उसने सोनू को गले लगा लिया।उनकी हथेलियों को चूमा और अपने हाथों से सोनू के आँसू पोंछते हुए कहा, " बेटा मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है आज ।"
" नहीं सरजी ! इसमें आपकी कोई गलती नहीं है, मेरी किस्मत ही खराब है, "सोनू ने धीमे स्वर में कहा और फफक फफक कर रोने लगा। छुट्टी के बाद दत्ता सर सोनू के घर गए और उनके पालकों से मिलकर माफी माँगी। सोनू के पिताजी ने कहा, "कोई बात नहीं गुरुजी, आपने यह सब जान बूझकर नहीं किया। गुरुजी आप लोग माली की तरह है, आपकी देखरेख में ही हमारे बच्चे फूलों की तरह महकते हैं और अच्छे इंसान बनते हैं।आप लोग माता पिता से भी बढ़कर है। " यह बात सुनकर दत्ता सर की आँखें भर आईं। उस घटना के बाद उनके भीतर सकारात्मक परिवर्तन आया। वे बच्चों की परेशानियों और तकलीफों को समझने लगे। अब वे डाँटने से पहले बच्चों की समस्या को जानने की कोशिश करने लगे। बच्चों से जुड़कर दत्ता सर उस विद्यालय के सबसे प्रिय शिक्षक बन गए।
सीख :- हम शिक्षक बच्चों की वस्तु स्थिति, उनकी समस्याओं और सच्चाई को जाने बिना उन पर बरस पड़ते हैं। पर अच्छी बात यह कि अपनी ग़लती जानने के बाद प्रायश्चित करते हैं और अपनी भूल भी सुधारते हैं।