पद्मश्री उषा बारले
पद्मश्री उषा बारले


पंडवानी गायन के माध्यम से देश-विदेश में छत्तीसगढ़ की संस्कृति की छटा को बिखेरने वाली लोककला मंच भिलाई की पंडवानी गायिका उषा बारले किसी परिचय का मोहताज नहीं है।उनकी विशिष्ट प्रतिभा और दिन रात मेहनत के कारण उन्हें अभी अभी पद्यश्री पुरस्कार भी मिल गया, यह पूरे छत्तीसगढ़ राज्य के लिए गर्व और हर्ष का विषय है।
उनका जन्म छत्तीसगढ़ की पावन माटी में 2 मई सन 1968 को भिलाई में हुआ। उनकी माता श्रीमती धनमत बाई एवं पिता स्व. खाम सिंह जांगड़े जी है। श्री अमरदास बारले के साथ उनका बाल विवाह सन 1971 में हुआ। 7 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही उन्होंने गुरू मेहत्तरदास बघेल जी से पंडवानी गायन की शिक्षा ली।उनके पिताजी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी पंडवानी गाये इसलिए एक बार स्कूल में उसे गाते देखकर वे उषा को गाने के लिए मना किये पर उषा नहीं मानी और गाने की जिद करने लगी।वह मुहल्ले के बच्चों के साथ हाथ में लकड़ी लेकर उसे चिकारा समझकर पंडवानी गाती थी। एक बार उसके पिताजी उसकी गाने की जिद को देखकर उसे कुएँ में फेंक दिए थे।तब उसकी माँ ने मुहल्ले वालों की मदद से उसे बाहर निकाला।उषा की प्रबल इच्छाशक्ति के आगे पिताजी को झुकना पड़ा और वे उसे कलाकार बनने का आशीर्वाद दिए।उनके जीवन की सबसे कठिन घड़ी वो थी, जब उन्होंने पूरी रात अपने पिता के शव के सामने बैठकर पंडवानी गाई।
उषा जी ने अपना प्रथम कार्यक्रम भिलाई खुर्सीपार में दिया गया है। फिर धीरे-धीरे भि
लाई स्टील प्लांट के सामुदायिक विभाग के लोक महोत्सव में 1975 में भाग लिया जो आज तक जारी है।उन्होंने पंडवानी की सुप्रसिद्ध गायिका पदम् विभूषण डॉ. तीजन बाई से भी प्रशिक्षण प्राप्त की हैं।
सन 1999 में दिल्ली जंतर-मंतर में विद्याचरण शुक्ल के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के लिए धरना दी थी। जिसके उन लोगों को 45 मिनट तक जेल के अंदर रखा गया। बाद में उनकी मांग को सही मानते हुए बहुत विचार मंथन के बाद उन लोगों को बाहर निकाला गया तब से एक क्रांतिकारी कलाकार के रूप में उन्हें जाना जाने लगा।वें छत्तीसगढ़ के अलावा न्यूयार्क, लंदन, जापान में भी पंडवानी गायन कर चुकी है। गुरूघासीदास के जीवनगाथा को पंडवानी के रूप में गाने का श्रेय सबसे पहले उन्हें जाता है।सन 2006 में दिल्ली के गणतंत्र दिवस परेड में छत्तीसगढ़ से पंडवानी का प्रतिनिधित्व कर उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया।सन 2014 में उन्हें गुरूघासीदास सामाजिक चेतना पुरूस्कार से सम्मानित किया गया।
भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन ने दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान से सम्मानित किया है। गिरौदपुरी तपोभूमि में 6 बार स्वर्ण पदक से सम्मानित हो चुकी है।
कोरोनाकाल में 2 लाख रूपये चंदा इकठ्ठा कर जरूरतमंद लोगों को उनके मंच की तरफ से सहयोग किया गया।एक छोटे से जगह में जन्म लेकर, बाल विवाह होने के बावजूद इतनी ख्याति प्राप्त करना कोई आसान काम नहीं है। यह सब संभव हो पाया है उनकी मेहनत और लगन से।