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Anita Chandrakar

Children Stories

4.0  

Anita Chandrakar

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गोबर की खाद

गोबर की खाद

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रानी अपने माता पिता की लाडली बेटी थी। वह कमल के फूल की तरह सुंदर और मृदुल स्वभाव की थी। वह दूसरी कक्षा में पढ़ती थी। हर बच्चे की तरह उसको भी खेलना कूदना अच्छा लगता था। कभी कभी वो खेलकूद के चक्कर में पढ़ना लिखना त्याग देती थी। एक बार उनके पिताजी ने उसको खेलते देखकर पास बुलाया और कहा, "रानी बेटी चलो पहाड़ा सुनाओ।" रानी पहाड़ा सुनाने लगी, सुनाते सुनाते वह तेरह की पहाड़ा में आकर अटक गई। पिताजी को बहुत गुस्सा आया, उन्होंने कहा, " जाओ गोबर बीनने और जब तक टोकरी न भरे, घर वापस मत आना।" रानी टोकरी उठाई और दोपहर की चिलचिलाती धूप में घर से निकल गई। बगीचे में उनको कहीं गोबर नहीं मिला, वह रोते रोते आम के पेड़ की छाया में बैठ गई। उसको खोजते खोजते माँ उसके पास गई।उनको गले लगाकर चुप कराई

और घर चलने के लिए बोली।"नहीं माँ ! मैं बिना गोबर लिए घर कैसे जाऊँ? बाबूजी डाँटेंगे,"रानी की कहा।माँ का दिल कहाँ मानता, बेटी के मनोभावों को समझते हुए इधर उधर से गोबर इकट्ठा करके टोकरी में डाली और दोनों घर की ओर गए।पिताजी दरवाजे पर इंतज़ार करते बैठे थे। रानी, माँ के आँचल में छुप गई। पिताजी रुआँसा होते हुए अपनी लाडली बिटिया को गले गला लिए। माता पिता के अनुशासन, प्यार, ममता और सही परवरिश से रानी बड़ी होकर दुनिया में अपना नाम कमाई और अपने माता पिता को गौरवान्वित की। जैसे गोबर की खाद से मिट्टी उपजाऊ बनती है, धूप, पानी और उचित देखरेख से नन्हा पौधा सुदृढ़ वृक्ष बनता है, वैसे ही नन्हें नन्हें बच्चे भी सही देखरेख और उचित मार्गदर्शन से पल्ल्वित पुष्पित और फलित होते हैं।



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