याद तुम्हारी आती है
याद तुम्हारी आती है


जब किताब मे रखे उस सूखे फूल से महक आज भी आती है
जब लाख तुझे भुलाने पर भी तू ही तू याद आती है
जब कुछ मजबूरी के चलते हर बात भुलाई जाती है
सच कहता हूँ तब हे प्रिय मुझे याद तुम्हारी आती है
जब कोई राधिका पनघट पर गगरी भरने आती है
फ़िर किसी नटखट से वो वो गगरी गिर जाती है
देख यह दृश्य मन मे उधल पुथल मच जाती है
सच कहता हूँ तब हे प्रिय मुझे याद तुम्हारी आती है
जब नाम मिटा कर इन हाथों से फिर मेहंदी रचाई जाती है
जब मुझे भुलाने कि खातिर तू बेटी धर्म निभाती है
जब सारी यादें तेरी मेरी अश्कों में बेह जाती हैं
सच कहता हूँ तब हे प्रिय मुझे याद तुम्हारी आती है
फिर काग़ज़ लिए इन हाथों में एक कलम उठाई जाती है
फिर लिखते लिखते अश्कों से वो कलम भीगोइ जाती है
फिर तेरे सुन्दर मुखड़े सी एक ग़ज़ल बनाई जाती है
सच कहता हूँ तब हे प्रिय मुझे याद तुम्हारी आती है।