"दर्द नामा"
"दर्द नामा"
उससे बिछड़ के मैं वापस आ तो रहा था, मगर मुझे खुद मालूम ना था मैं किस तरफ जा रहा था, हल्की मुस्कराहट के साथ उसने मुझे अलविदा कह तो दिया, जाने क्यूँ ऐसा लगा वो मुझे अपने पास बुला रहा था..
कुछ सालों बाद जब कल उसका फोन आया था, जाने क्यूँ वो इतना सहमा और घबराया था, ज़िक्र हुआ उसका मुझसे बिछड़ के जिसे उसने अपनी जान बताया था, बतायी दास्तान बीते हुए वक़्त कि जब उसने तब पता चला, मुझसे बिछड़ के वो आंखें इतना रोई हैं, मेरे रहते जिनमें एक आंसू भी ना आया था..
और कहती है कि इस हाल में भी वो उसे किसी वैद हकीक को नहीं दिखाता, एक हम थे एक छिक आने पर भी उसे शहर के सबसे बड़े हकीम को दिखाया था..
अब उसके जुल्म और सितम वो बर्दाश्त करती है, मिले कुछ सुकून उसे जाकर मंदिर में फ़रियाद करती है, और कहती है मुझसे कि खुश हूं मैं क्योंकि तुम खुश हो, पर याद रखना एक पगली तुम्हें आज भी याद करती है।