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Poonam Bagadia

Abstract

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Poonam Bagadia

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व्यवहार

व्यवहार

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"उठो सुधा माँ नीचे बुला रही है कब तक सोती रहोगी

विनय ने झकझोर कर सुधा को उठाया, सुधा ने अनमने मन से आँखें खोली और तानो की बारिश शुरू कर दी "तुम्हारी माँ को और कोई काम तो होता नहीं हर समय सुधा ये कर दे, सुधा वो कर दे कभी खुद से भी काम करती है ?

विनय चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा कहता भी क्या वो भी जनता था सुधा मन की बुरी नहीं पर उसका व्यवहार ही ऐसा है सब का काम कर तो देती है पर ज़ुबान से कड़वी है

"अच्छा सुनो विनय ने कुछ याद करते हुए कहा "शायद आज शिवम और आकांक्षा आएंगे

"क्या ? सुधा ने मुह बनाते हुये कहा "वो लोग क्यों आ रहे हैं।

"क्या पिता जी मान गये उनकी शादी को ?

"शिवम मेरा छोटा भाई है सुधा अपनी मर्ज़ी से शादी की तो क्या हुआ अब घर आ रहा है ना मिलने वो चाहता तो न आता उसे फर्क नहीं पड़ता अच्छी सरकारी नौकरी है दोनों की

"सुधा नीचे से माँ ने आवाज लगाई तो सुधा साड़ी का पल्लू ठीक करते हुऐ बोली "आई माँ जी। 

सुधा खुद ही बुदबुदाते हुए नीचे आई तो देख कर दंग रह गई सामने शिवम और आकांशा खड़े थे आकांक्षा ने आगे बढ़ कर अपनी जेठानी के पैर छुये और गले से लिपट गई "कैसी हो दीदी ? ?

"अच्छी हूँ तुम लोग आज यहाँ कैसे ?

तभी माँ को देख कर आकांशा भाग कर माँ के पास गई पैर छुये तो माँ ने नाराजगी से पैर पीछे खींच लिये पर आकांक्षा ने एक पल भी बिना गवाए माँ के गले लग कर बोली "माफ भी कर दो माँ शादी को 2 साल हो गये है अब तो मुझे स्वीकार कर लो

आकांक्षा के आलिंगन से माँ जैसे पिघलने लगी थी पर बोली कुछ नहीं बस अपने सास होने का फर्ज़ निभा रही थी उसे गुस्सा देखा कर

पिता जी भी अब कमरे से बाहर निकल आये थे शिवम ने डर कर आकांक्षा का हाथ पकड़ लिया पर आकांक्षा ने अपना हाथ छुड़ा कर पिता जी के पैरों पर झुक गई उनके पैर छूते हुए बोली "पिता जी माफ कर दीजिए। 

मेरे पिता नहीं है पिता के प्यार को तरसती हूँ, आकांक्षा की आंखों में आँसू भर गये "इनको रोते हुए देखा है आपके लिए

पता नहीं आकांक्षा के व्यवहार में क्या जादू था पिता जी ने मुस्कुरा कर उसके सर पर हाथ रख दिया

आकांक्षा का मधुर व्यवहार से घर मे हर किसी की ज़ुबान पर उसका ही नाम था  

सुधा मन ही मन सोच रही थी मेरी शादी माँ पिता जी की मर्ज़ी से हुआ पर मुझे कभी पिता जी ने प्यार से सर पर हाथ नहीं रखा , और आकांक्षा को उसी के लिये शिवम घर छोड़ कर चला गया था उसे इतना दुलार मिल रहा है।

"ये दुलार आकांक्षा के मधुर व्यवहार से मिल रहा है विनय उसकी मनोस्थिति जान कर अनायास ही बोल पड़ा 

"शिवम तो आना ही नहीं चाहता था आकांक्षा ज़िद कर के लाई है वो नहीं चाहती शिवम अपने परिवार से दूर रहे, उसने कल ही फोन कर के मुझ से विनती की थी

सुधा को जैसे अब समझ आ रहा था रिश्ते मात्र धक्कों से नहीं मीठे व्यवहार के पहियों से चलते हैं।


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