"लाल बत्ती"

"लाल बत्ती"

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"जब भी, उस लाल बत्ती के सिग्नल पर कोई गाड़ी रुकती, वो अपने नन्हे हाथों में फूल दबाये, उस तरफ दौड़ा आता..

"सर ले लीजिए .... प्लीज, बिल्कुल फ्रेश है.. इसकी खुश्बू से मन खुश हो जाएगा "

वो हर गाड़ी के मालिक से यही अनुनय - विनय करता।


"स्कूल से भाग कर आया क्या?"

उसे स्कूल ड्रेस में, ऐसे लाल बत्ती पर फूल बेचते देख कर हर दूसरा इंसान उससे यही सवाल करता।

"मजबूरी है सर.... पापा को खोने के बाद, बीमार माँ को भी खोना नहीं चाहता....

बड़ी बहन को ज़िम्मेदारी के बोझ तले, घुट कर जीने नहीं देना चाहता।"


उसके मासूम चेहरे पर बेबसी के कई भाव उमड़ जाते ....

कोई उसे दुत्कारा कर आगे बढ़ जाता, तो कोई उसे एक फूल के बदले 100 रुपये उसकी हथेली पर रख देता...


"नहीं सर ... सिर्फ 10 रुपये ही दीजिये।"


 इतना कह, वो बाकी पैसे लौटा कर,मात्र 13 वर्ष की उम्र में, अपनी खुद्दारी, अपने आत्मसम्मान और अपने सभ्य संस्कारो का परिचय देता प्रतीत होता।


आज भी लाल बत्ती के सिंग्नल पर एक मर्सिडीज आ कर रुकी..

वो भाग कर उस तरफ गया..

उसमे एक नवयुवा जोड़ा बैठा था

"सर फूल ले लीजिये"

"अरे.. जब इतना हसीन फूल पास है तो तेरे फूल लेकर क्या करूँगा?"

वो कुटिलता से मुस्कुराते हुआ बोला

लड़की ये सुनते ही असहज भाव से कसमकसा कर रह गई ।लड़की ने सर उठा कर उसकी ओर बेबसी से देखा तो, जैसे घबरा कर झट से अपना पर्स खोल कर, उसमे से 10 रुपए निकाले... और बिना कुछ बोले उसके हाथ से फूल ले कर 10 रुपये उसे थमा दिये....

उस लड़की ने अपने चेहरे को अपने दुपट्टे से पूर्णतया ढका हुआ था,जैसे कि आजकल लड़कियां रखती है, शायद... धूप से बचने के लिए ... पर.... उनकी आंखें कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी

"अरी ओ छमिया... कभी हमारे साथ भी वक्त गुजार..."

किसी ने भद्दे से अंदाज़ में कहा,,,

लड़की ने बेबस नज़रो से पास बैठे लड़के की तरफ देखा...शायद इस उम्मीद पर की वो, उस आदमी के भद्दे शब्दों के तीर से उसकी रक्ष करे, पर ये क्या..?वो तो एक गंदी सी हँसी हँस कर रह गया...

"सर आप दीदी के लिए ऐसे न बोलिये"

वो नन्हा सा बालक लड़की के आत्मसम्मान के लिए उस आदमी से उलझ गया..

"अबे जा तुझे क्या पता ... ऐसी लड़कियां पैसे की खातिर ही गाड़ी में बैठती है...

अभी तू बच्चा है.."कहते हुए उसने उसके कोमल से गालो को थपथपाया ।

तभी सिंग्नल हरा हो गया,सभी गाड़िया आगे बढ़ गईं।

वो मर्सिडीज भी जा चुकी थी।

पर जाते जाते उस लाल बत्ती पर उस बालक के दिमाग मे कई सवाल और शंका छोड़ गये...

"गाड़ी में बैठने पर पैसे क्यो मिलते है??


बहुत से सवालों में उलझा वो घर पहुँचा तो अपनी बड़ी बहन को, जैसे खुद का इंतजार करते पाया ..

"कहाँ थे तुम..??"

उसकी बहन ने काम मे व्यस्त होने का नाटक करते हुऐ आँखे चुरा कर पुछा..

"स्कूल से आ रहा हूँ.... खाना लगा दो भूख लगी है..थोड़ी थकान सी भी है।"

उसने स्कूल बैग रखते हुऐ कहा

"हाँ... थक तो जाता होगा, मेरा भाई, सारा दिन धूप में जो खड़ा रहता है।"

उसने चौंक कर अपनी बहन की तरफ देखा ..

"हे भगवान दीदी को कैसे पता चला...मैं लाल बत्ती पर फूल बेच कर माँ के इलाज के लिए पैसे इकट्ठा कर रहा हूँ"... वो मन ही मन बुदबुदाया।

जैसे ही उसने मुड़ कर अपनी बहन की तरफ देखा तो आश्चर्य चकित रह गया उसकी बहन उसे डांटने के बजाए खुद रोते हुए उससे,अपनेआँसू छिपा रही थी।

"क्या हुआ दीदी,रो क्यों रही हो?"

कहते हुऐ जैसे ही उसने आँसू पोछे,उसको मर्सडीज वाली लड़की की आंखे याद आने लगी।

उसकी नन्ही आँखो में भी आँसू उमड़ पड़े... वो अपनी दीदी के गले लग कर रोना चाहता था पर कुछ सोच कर रह गया।

 कैसे लाल बत्ती पर हम जैसे गरीबो की ज़िंदगी जिम्मेदारी और मज़बूरी के कारण रुक सी जाती है?? 

वो सब समझ चुका था.. पर बोल कर अपनी बहन के त्याग को दाग़ दार नही करना चाहता था।



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